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________________ १६ अगारे के दो अर्थ - (१) शून्यागारों में, (२) घरों में । १ संधी के दो अर्थ (१) घरों के बीच की सन्धियों में, (२) दो दीवारों के बीच के प्रच्छन्न स्थानों में । २ विनीत के लिए अनुशासन - स्वीकार का विधान उत्तराध्ययनसूत्र २७. जं मे बुद्धाणुसासन्ति सीएण फरुसेण वा । 'मम लाभो' त्ति पेहाए पयओ तं पडिस्सुणे ॥ [२७] 'सौम्य (शीतल — कोमल) अथवा कठोर शब्द से प्रबुद्ध (तत्त्वज्ञ आचार्य) मुझ पर जो अनुशासन करते हैं, वह मेरे लाभ के लिए है, ' ऐसा विचार कर प्रयत्नपूर्वक उस अनुशासन ( शिक्षावचन) को स्वीकार करे । २८. अणुसासणमोवायं दुक्कडस्स य चोयणं । हियं तं मन्नए पण्णो वेसं होइ असाहुणो ॥ [ २८.] आचार्य के द्वारा किया जाने वाला प्रसंगोचित मृदु या कठोर अनुशासन ( औपाय), दुष्कृत निवारक होता है। प्राज्ञ (बुद्धिमान) शिष्य उसे हितकारक मानता है, वही (अनुशासन) असाधु-अविनीत मूढ के लिए द्वेष का कारण बन जाता है। २९. हियं विगय-भया बुद्धा फरुसं पि अणुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं खन्ति - सोहिकरं पयं ॥ [२९] भय से मुक्त मेधावी (प्रबुद्ध) शिष्य गुरु के कठोर अनुशासन को भी हितकर मानते हैं, किन्तु वही क्षमा और चित्त शुद्धि करने वाला (गुण - वृद्धि का आधारभूत) अनुशासन-पद मूढ शिष्यों के लिए द्वेष का कारण हो जाता है । विवेचन — अणुसासंति— अनुशासन शब्द यहाँ शिक्षा, उपदेश, नियंत्रण आदि अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। ३ 'सीएण फारुसेण वा' - शीत शब्द के दो अर्थ – (१) सौम्य शब्द और (२) समाधानकारी शब्द। परुष का अर्थ है— कर्कश – कठोर शब्द । ४ 'ओवायं' के दो रूपान्तर — औपायम् और औपपातम् । औपायम् का अर्थ है— कोमल और कठोर वचनादि रूप उपाय से होने वाला । उपपात का अर्थ है - समीप रहना, गुरु की सेवाशुश्रूषा में रहना, उपपात से होने वाला कार्य औपपात है । ५ खंति-सोहिकरं—दो अर्थ - (१) क्षमा और शुद्धि — आशयविशुद्धता करने वाला, (२) क्षान्ति की शुद्ध निर्मलता करने वाला । गुरु का अनुशासन क्षान्ति का हेतु है और मार्दवादि शुद्धि कारक है। १. (क) ‘अगारं नाम सुण्णागारं ' — उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ० ३७ (ख) 'अगारेषु - गृहेषु । ' — बृहद्वृत्ति, पत्र ७० २. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ५७ (ख) उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ० ३७ ३. बृहद्वृत्ति, पत्र ५७, ४. वही, पत्र ५७ ५. वही, पत्र ५७-५८ ६. बृहद्वृत्ति, पत्र ५८
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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