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उत्तराध्ययनसत्र
. [१३] गुरु के वचनों को नहीं सुनने वाले, ऊटपटांग बोलने वाले (स्थूलभाषी) और कुशील (दुष्ट) शिष्य मृदु स्वभाव वाले गुरु को भी चण्ड (क्रोधी) बना देते हैं, जब कि गुरु के मनोऽनुकूल चलने वाले एवं दक्षता से युक्त (निपुणता से कार्य सम्पन्न करने वाले) शिष्य, दुराशय (शीघ्र ही कुपित होने वाले दुराश्रय) गुरु को भी झटपट प्रसन्न कर लेते हैं।
विवेचनगलियस्स-गलिताश्व का अर्थ है-अविनीत घोड़ा । उत्तराध्ययननियुक्ति में गंडी (उछलकूद मचाने वाला), गली (पेट में कुछ निगलने पर ही चलने वाला) और मराली (गाड़ी आदि में जोतने पर मृतकसा होकर बैठ जाने वाला–मरियल अथवा लात मारने वाला), ये तीनों शब्द दुष्ट घोड़े और बैल के अर्थ में पर्यायवाची हैं।
आइण्णे-आकीर्ण का अर्थ है—विनीत या प्रशिक्षित अश्व। आकीर्ण, विनीत और भद्रक ये तीन शब्द विनीत घोड़े और बैल के अर्थ में समानार्थक हैं।२
दुरासयं—दो अर्थ-(१) दुराशय (दुष्ट आशय वाले) और (२) दुराश्रय-अत्यन्त क्रोधी होने के कारण दु:ख से (बड़ी मुश्किल से) आश्रय पाने वाले (ठिकाने आने वाले—शान्त होने वाले) गुरु को।३।।
अतिक्रोधी चण्डरुद्राचार्य का उदाहरण उज्जयिनी नगरी के बाहर उद्यान में एक बार चण्डरुद्राचार्य सशिष्य पधारे। एक नवविवाहित युवक अपने मित्रों के साथ उनके पास आया और कहने लगा—'भगवन् ! मुझे संसार से तारिये। उसके साथी भी कहने लगे_'यह संसार से विरक्त नहीं हआ है. यह आपको चिढा रहा
इस पर चण्डरुद्राचार्य क्रोधावेश में आ कर कहने लगे—'ले आ, तुझे दीक्षा देता हूँ।' यों कह कर उसका मस्तक पकड़ कर झटपट लोच कर दिया।
___ आचार्य द्वारा उक्त युवक को मुण्डित करते देख, उसके साथी खिसक गए । नवदीक्षित शिष्य ने कहा'गुरुदेव! अब यहाँ रहना ठीक नहीं है, अन्यत्र विहार कर दीजिए, अन्यथा यहाँ के परिचित लोग आ कर हमें तंग करेंगे।' अत: आचार्य ने मार्ग का प्रतिलेखन किया और शिष्य के अनुरोध पर उसके कंधे पर बैठ कर चल पड़े। .
रास्ते में अंधकार के कारण रास्ता साफ न दिखने से शिष्य के पैर ऊपर नीचे पड़ने लगे। इस पर चण्डरुद्र आचार्य कुपित हुए और शिष्य को भला-बुरा कहने लगे। पर शिष्य ने समभावपूर्वक गुरु के कठोर वचन सहे। सहसा एक खड्डे में पैर पड़ने के कारण गुरु ने मुण्डित सिर पर डंडा फटकारा, सिर फूट गया, रक्त की धारा बह चली, फिर भी शिष्य ने शान्ति से सहन किया, कोमल वचनों से गुरु को शान्त करने का प्रयत्न किया। इस उत्कृष्ट क्षमा के फलस्वरूप उच्चतमभावधारा के साथ शिष्य को केवलज्ञान हो गया। केवलज्ञान के प्रकाश में अब उसके पैर सीधे पड़ने लगे। फिर भी गुरु ने व्यंग्य में कहा—'दुष्ट! डंडा पड़ते ही सीधा हो गया।' अब तुझे रास्ता कैसे दीखने लगा?' १. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ४८
(ख) 'गंडी गली मराली, अस्से गोणे य हुंति एगट्ठा।' –उत्तराध्ययननियुक्ति, गा० ६४ २. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ४८
(ख) 'आइन्ने य विणीए भद्दए वावि एगट्ठा'-उत्तराध्ययननियुक्ति, गा. ६४ ३. बृहद्वृत्ति, पत्र ४८