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________________ उत्तराध्ययनसूत्र विनय सूत्र अप्रतिकूलता, (१०) गुरुजनों की कठोर शिक्षा का सहर्ष स्वीकार, (११) यथाकालचर्या, आहारग्रहण - सेवनविवेक, भाषाविवेक आदि साधुसमाचारी का पालन।' * विनय का अर्थ यहाँ दासता, दीनता या गुरु की गुलामी नहीं है, न स्वार्थसिद्धि के लिए किया गया कोई दुष्ट उपाय है और न ही कोई औपचारिकता है। सामाजिक व्यवस्थामात्र भी नहीं है। अपितु गुणी जनों और गुरुजनों के महान् मोक्षसाधक पवित्र गुणों के प्रति सहज प्रमोदभाव है, जो गुरु और शिष्य के साथ तादात्म्य एवं आत्मीयता का काम करता है। उसी के माध्यम से गुरु प्रसन्नतापूर्वक अपनी श्रुतसम्पदा एवं आचारसम्पदा से शिष्य को लाभान्वित करते हैं। * बृहद्वृत्ति के अनुसार विनय के मुख्य दो रूप फलित होते हैं- लौकिकविनय एवं लोकोत्तरविनय। लौकिकविनय में अर्थविनय, कामविनय, भयविनय और लोकोपचारविनय आते हैं और लोकोत्तरविनय, जो यहाँ विवक्षित है, और जिसे यहाँ मोक्षविनय कहा गया है, उसके ५ भेद किये गए हैं- दर्शनविनय, ज्ञानविनय, चारित्रविनय, तपोविनय और उपचारविनय। औपपातिकसूत्र में इसी के ७ प्रकार बताए हैं-(१) ज्ञानविनय, (२) दर्शनविनय. (३) चारित्रविनय. (४) मनविनय (५) वचनविनय, (६) कायविनय और (७) लोकोपचारविनय। * विनय का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ किया गया है-अष्टविध कर्मों का जिससे विनयन- उन्मूलन किया ___जाए। इस दृष्टि से प्रस्तुत अध्ययन में मोक्षविनय ही अभीष्ट है। * प्रस्तुत अध्ययन की दूसरी, अठारहवीं से २२वीं तक और तीसवीं गाथा में लोकोपचारविनय की दृष्टि से विनीत के व्यवहार का वर्णन किया है। उसके ७ विभाग हैं—(१) अभ्यासवृत्तिता, (२) परछन्दानुवृत्तिता, (३) कार्यहेतु-अनुलोमता, (४) कृतप्रतिक्रिया, (५) आर्तगवेषणा, (६) देशकालज्ञता और (७) सर्वार्थ-अप्रतिलोमता। इसी प्रकार ९,१५,१६,३८,३९,४० वीं गाथा मनोविनय के सन्दर्भ में १०,११,१२,१४,२४,२५,३६,४१वीं गाथा वचनविनय के सन्दर्भ में, १७ से २२ एवं ३०,४०,४३,४४वीं गाथा कायविनय के सन्दर्भ में, ८वीं एवं २३वीं गाथा ज्ञानविनय के सन्दर्भ में, १७ से २२ तक दर्शनविनय (अनाशातना और शुश्रूषविनय) के सन्दर्भ में तथा शेष गाथाएँ चारित्रविनय (समाचारी- पालन, भिक्षाग्रहण-आहार-सेवनविवेक, अनुशासनविनय आदि) के सन्दर्भ में प्रतिपादित हैं। * प्रस्तुत अध्ययन में विनयी और अविनयी के स्वभाव, व्यवहार और आचरण का सांगोपांग वर्णन है। * अध्ययन के उपसंहार में ४५ से ४८वीं गाथा तक विनीत शिष्य की उपलब्धियों का विनय की फलश्रुति __ के रूप में वर्णन किया गया है। कुल मिला कर मोक्षविनय का सांगोपांग वर्णन किया गया है। १. उत्तराध्ययन अ० १. गाथा २, ७, ८ से १४ तक, १५-१६, १७ से २२ तक, २४-२५, २७ से ३०तक, ३१ से ४४ तक २. उत्तरा० गा० ४६ ३. (क) बृहद्वृत्ति. पत्र १६ (ख) औपपातिकसूत्र २०, (ग) विनयति-नाशयति सकलक्लेशकारकमष्टप्रकारं कर्म स विनयः- आवश्यक म० अ० १ ४. 'से किं तं लोगोवयारविणए? सत्तविहेप० तं०......।'- औपपातिक २० ५. उत्तराध्ययन मूल अ० १
SR No.003466
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_uttaradhyayan
File Size16 MB
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