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पढमं अज्झयणं : विणयसुन्तं
प्रथम अध्ययन : विनयसूत्रम्
विनय - निरूपण - प्रतिज्ञा
१.
संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो । विणयं पाउकरिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे ॥
[१] जो सांसारिक संयोगों (- आसक्तिमूलक बन्धनों) से विप्रमुक्त ( - विशेषरूप से — सर्वथा दूर) है, अनगार (-अगाररहित — गृहत्यागी ) है तथा भिक्षु (-निर्दोष भिक्षा पर जीवननिर्वाह करने वाला) है; उसके विनय ( - अनुशासन अथवा आचार) का मैं क्रमशः प्रतिपादन करूंगा। (तुम) मुझसे (ध्यानपूर्वक)
सुनो।
विवेचन—संयोग दो प्रकार के हैं । बाह्यसंयोग — परिवार, गृह, धन, धान्य आदि । आभ्यन्तर संयोग — विषयवासना, कषाय, काम, मोह, ममत्व तथा बौद्धिक पूर्वाग्रह आदि । १
अणगारस्स भिक्खुणो में अणगार+स्स- भिक्खुणो (अनगार-अस्व- भिक्षोः), यों पदच्छेद करने पर अर्थ होता है - जो गृहत्यागी है, जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है, सब कुछ याचित है; अर्थात् — जो अकिंचन है और जो भिक्षाप्राप्ति के लिए जाति आदि अपनेपन का परिचय देकर दूसरों को अपनी ओर आकृष्ट नहीं करता, ऐसा निर्दोष अनात्मीय- भिक्षाजीवी ।२
विनय के तीन अर्थ - नम्रता, ३ आचार और अनुशासन ।' प्रस्तुत में विनय का अर्थ श्रमणाचार तथा अनुशासन ही मुख्यतया समझना चाहिए; जो कि जैनशास्त्रों और बौद्धग्रन्थों में भी पाया जाता है । ६
विनीत और अविनीत के लक्षण
२. आणानिद्देसकरे, गुरूणमुववायकारए । इंगियागारसंपन्ने, से 'विणीए' त्ति वुच्चई ॥
१. 'संयोगात् सम्बन्धात् बाह्याभ्यन्तर- भेदभिन्नात् । तत्र मात्रादिविषयाद् बाह्यात्, कषायादिविषयाच्चान्तरात् ।'
- सुखबोधावृत्ति, पत्र १
२.
(क) अनगारस्य परकृतगृहनिवासित्वात् तत्रापि ममत्वमुक्तत्वात् संगरहितस्य । —सुखबोधावृत्ति, पत्र १ (ख) अथवा अस्वेषु भिक्षरस्वभिक्षुः- जात्याद्यनाजीवनादनात्मीकृतत्वेन अनात्मीयानेव गृहिणोऽन्नादि भिक्षते इति कृत्वा अनगारश्चासावस्वभिक्षुश्च अनगारास्वभिक्षुः । — • बृहद्वृत्ति (शान्त्याचार्यकृत) पत्र १९
३. औपपातिकसूत्र २० तथा स्थानांग, स्थान ७ में वर्णित ७ प्रकार के विनय नम्रता के अर्थ में हैं।
४. ज्ञातासूत्र, १ / ५ के अनुसार आगारविनय ( श्रावकाचार) और अनगारविनय ( श्रमणाचार), ये दो भेद आचार अर्थ के प्रतिपादक हैं।
५. विनय अर्थात् नियम (Discipline ), अथवा भिक्षु भिक्षुणियों के आचारसम्बन्धी नियम ।
– देखें विनयपिटक, भूमिका — राहुलसांकृत्यायन ६. प्रस्तुत अध्ययन में अनुशासन, आज्ञापालन, संघीय नियम- मर्यादा आदि अर्थों में भी विनय शब्द प्रयुक्त हुआ है।