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________________ प्रथम दशा] ___ १९. सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ न कुछ खाते रहना-भोजन के समय भोजन कर लेना और बाद में भी सारा दिन कुछ न कुछ खाते रहने से शरीर तो अस्वस्थ होता ही है, साथ ही रसास्वादन की आसक्ति बढ़ जाती है। इस प्रकार की प्रवृत्ति करने वाले भिक्षु को उत्तरा. अ. १७ में पाप-श्रमण कहा है। संयम निर्वाह के लिए श्रमण सीमित पदार्थों का ही सेवन करे। शास्त्रों में छह कारण आहार करने के कहे हैं और सामान्य नियम तो यह है कि दिन में एक बार ही भिक्षु आहार ग्रहण करे। बारबार कुछ न कुछ खाते रहना उन्नीसवां असमाधिस्थान है। २०. अनेषणीय भक्त-पान आदि ग्रहण करना-आहार-वस्त्रादि आवश्यक पदार्थ ग्रहण करते समय उद्गम, उत्पादन और एषणा के दोषों को टालकर गवेषणा न करने से संयम दूषित होता है। नियुक्ति आदि व्याख्याग्रन्थों में एषणा के ४५ दोष कहे हैं। उनके अतिरिक्त आगमों में अनेक दोष वर्णित हैं। ठाणांग के चौथे ठाणे में शुद्ध गवेषणा करने वाले को अनुत्पन्न अतिशय ज्ञान की उपलब्धि होना कहा गया है। भक्त-पान ग्रहण करते समय गवेषणा न करते से संयम में शिथिलता आती है। यह बीसवां असमाधिस्थान है। इन २० असमाधिस्थानों का त्याग करके भिक्षु को समाधिस्थानों का ही सेवन करना चाहिये, जिससे संयम में समाधि-प्राप्ति हो सके। ॥प्रथम दशा समाप्त॥
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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