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________________ २८८ २९० २९ २०॥ २९७ २९९ ३०३ ३०७ ३०८ ३११ ३२१ ३२४ ३२८ दूसरा उद्देशक विचरने वाले साधर्मिक के परिहारतप का विधान रुग्ण भिक्षुओं को गण से निकालने का निषेध अनवस्थाप्य और पारांचिक भिक्षु की उपस्थापना अकृत्यसेवन का आक्षेप और उसके निर्णय करने की विधि संयम त्यागने का संकल्प एवं पुनरागमन एकपक्षीय भिक्षु को पद देने का विधान पारिहारिक और अपारिहारिकों के परस्पर आहार-सम्बन्धी व्यवहार दूसरे उद्देशक का सारांश तीसरा उद्देशक गण धारण करने का विधि-निषेध उपाध्याय आदि पद देने के विधि-निषेध अल्पदीक्षापर्याय वाले को पद देने का विधान निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी को आचार्य के नेतृत्व बिना रहने का निषेध अब्रह्मसेवी को पद देने के विधि-निषेध संयम त्यागकर जाने वाले को पद देने के विधि-निषेध पापजीवी बहुश्रुतों को पद देने का निषेध तीसरे उद्देशक का सारांश चौथा उद्देशक आचार्यादि के साथ रहने वाले निर्ग्रन्थों की संख्या अग्रणी साधु के काल करने पर शेष साधुओं का कर्तव्य ग्लान आचार्यादि के द्वारा पद देने का निर्देश संयम त्याग कर जाने वाले आचार्यादि के द्वारा पद देने का निर्देश उपस्थापन के विधान अन्य गण में गये भिक्षु का विवेक अभिनिचारिका में जाने के विधि-निषेध चर्याप्रविष्ट एवं चर्यानिवृत्त भिक्षु के कर्तव्य शैक्ष और रत्नाधिक का व्यवहार रत्नाधिक को अग्रणी मानकर विचरने का विधान चौथे उद्देशक का सारांश पांचवां उद्देशक प्रवर्तिनी आदि के साथ विचरने वाली निर्ग्रन्थियों की संख्या ३३३ ३३६ ३३८ ३४१ ३४३ ३४६ ३४६ ३४९ ३५० ३५१ ३५३ ३५४ ३५६ . ७८
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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