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दसवां उद्देशक]
[४४७ सारांश-प्रथम चौभंगी में चौथा भंग उत्तम है, द्वितीय चौभंगी में भी चौथा भंग उत्तम है और तीसरी चौभंगी में तीसरा भंग उत्तम है। आचार्य एवं शिष्यों के प्रकार
१२. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा
१.पव्वावणायरिए नामेगे, नो उवट्ठावणायरिए, २. उवट्ठावणायरिए नामेगे, नो पव्वावणायरिए,३. एगे पव्वावणायरिए वि, उवट्ठावणायरिए वि, ४. एगे नो पव्वावणायरिए, नो उवट्ठावणायरिए-धम्मायरिए।
१३. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा
१. उद्देसणायरिए नामेगे, नो वायणायरिए, २. वायणायरिए नामेगे, नो उद्देसणायरिए। ३. एगे उद्देसणायरिए वि, वायणायरिए वि, ४. एगे नो उद्देसणायरिए, नो वायणायरिएधम्मायरिए।
१४. चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तं जहा
१. पव्वावणंतेवासी नामेगे नो उवट्ठावणंतेवासी, २. उवट्ठावणंतेवासी नामेगे, नो पव्वावणंतेवासी, ३. एगे पव्वावणंतेवासी वि उवट्ठावणंतेवासी वि, ४. एगे नो पव्वावणंतेवासी, नो उवट्ठावणंतेवासी-धम्मंतेवासी।
१५. चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तं जहा
१. उद्देसणंतेवासी नामेगे, नो वायणंतेवासी, २. वायणंतेवासी नामेगे, नो उद्देसणंतेवासी, ३. एगे उद्देसणंतेवासी वि वायणंतेवासी वि, ४. एगे नो उद्देसणंतेवासी, नो वायणंतेवासीधम्मंतेवासी।
१२. चार प्रकार के आचार्य कहे गये हैं, यथा
१. कोई आचार्य (किसी एक शिष्य की अपेक्षा) प्रव्रज्या देने वाले होते हैं, किन्तु महाव्रतों का आरोपण करने वाले नहीं होते हैं। २. कोई आचार्य महाव्रतों का आरोपण करने वाले होते हैं, किन्तु प्रव्रज्या देने वाले नहीं होते हैं । ३. कोई आचार्य प्रव्रज्या देने वाले भी होते हैं और महाव्रतों का आरोपण करने वाले भी होते हैं। ४. कोई आचार्य न प्रव्रज्या देने वाले होते हैं और न महाव्रतों का आरोपण करने वाले होते हैं, वे केवल धर्मोपदेश देने वाले होते हैं।
१३. चार प्रकार के आचार्य कहे गये हैं, यथा-१. कोई आचार्य (किसी एक शिष्य की अपेक्षा) मूलपाठ की वाचना देने वाले होते हैं, किन्तु अर्थ की वाचना देने वाले नहीं होते हैं। २. कोई आचार्य अर्थ की वाचना देने वाले होते हैं, किन्तु मूलपाठ की वाचना देने वाले नहीं होते हैं। ३. कोई आचार्य मूलपाठ की वाचना देने वाले भी होते हैं और अर्थ की वाचना देने वाले भी होते हैं। ४. कोई आचार्य मूलपाठ की वाचना देने वाले भी नहीं होते हैं और अर्थ की वाचना देने वाले भी नहीं होते हैं, वे केवल धर्माचार्य होते हैं।