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नवम उद्देशक ]
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२. आहार देने वाला गृहस्थ यदि छबड़ी से, वस्त्र से या चालनी से बिना रुके भिक्षु के हाथ में जितना आहार दे वह सब 'एक दत्ति' कहनी चाहिए।
३. आहार देने वाले गृहस्थ जहां अनेक हों और वे सब अपना-अपना आहार सम्मिलित कर बिना रुके भिक्षु के हाथ में झुकाकर दें, वह सब 'एक दत्ति' कहनी चाहिए ।
विवेचन - सप्तसप्ततिका आदि भिक्षुप्रतिमाओं में दत्तियों की संख्या से आहार ग्रहण करने का वर्णन किया गया है और इस सूत्रद्विक में दत्ति का स्वरूप बताया गया है।
दाता एक ही बार में धार खंडित किये बिना जितना आहार या पानी साधु के पात्र में दे उसे एक 'दत्ति' प्रमाण आहार या पानी कहा जाता है । वह एक दत्ति आहार- पानी हाथ से दे या किसी बर्तन सेदे अथवा किसी सूप, छाबड़ी आदि से दे, अल्पमात्रा में देकर रुक जाय या बिना रुके अधिक मात्रा मेंदे, वह सब एक बार में दिया गया आहार या पानी एक दत्ति ही कहा जाता है।
कभी कोई खाद्य पदार्थ अनेक बर्तनों में या अनेक व्यक्तियों के हाथ में अलग-अलग रखा हो, उसे एक बर्तन में या एक हाथ में इकट्ठा करके एक साथ पात्र में दे दिया जाए तो वह भी एक दत्ति ही समझना चाहिए।
पात्र नहीं रखने वाले अर्थात् कर-पात्री भिक्षु के हाथ में उपर्युक्त विधियों से जितना आहार आदि एक साथ दिया जाय, वह उनके लिए एक दत्ति समझना चाहिए ।
तीन प्रकार का आहार
४५. तिविहे उवहडे पण्णत्ते, तं जहा - १. फलिओवहडे, २. सुद्धोवहडे, ३. संसट्टोवहडे । ४५. खाद्यपदार्थ तीन प्रकार का माना गया है, यथा - १. फलितोपहृत - अनेक प्रकार के व्यंजनों से मिश्रित खाद्यपदार्थ । २. शुद्धोपहृत - व्यंजनरहित शुद्ध अलेप्य खाद्यपदार्थ । ३. संसृष्टोपहृतव्यंजनरहित सलेप्य खाद्यपदार्थ ।
विवेचन - भिक्षा में तीन प्रकार के खाद्यपदार्थ ग्रहण किये जाते हैं, जिसमें सभी प्रकार के ग्राह्य पदार्थों का समावेश हो जाता है ।
(१) अनेक पदार्थों के संयोग से संस्कारित मिष्ठान्न, नमकीन शाक- भाजी आदि को फलितोपहृत
कहा है।
(२) शुद्ध अलेप्य चने, ममरे, फूली आदि को शुद्धोपहृत कहा है।
(३) शुद्ध सलेप्य भात, रोटी, घाट, खिचड़ी आदि असंस्कारित गीले सामान्य पदार्थ को संसृष्टोपहृत कहा है। अभिग्रह धारण करने वाले भिक्षु इनमें से किसी भी प्रकार का अभिग्रह कर सकते
हैं ।