________________
४२८ ]
[ व्यवहारसूत्र
दत्ति-प्रमाणनिरूपण
४३. संखादत्तियस्स भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स (गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए, अणुपविट्ठस्स)
जावइयं - जावइयं केइ अन्तो पडिग्गहंसि उवइत्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया ।
तत्थ से केइ छव्वणवा, दूसएण वा, वालएणं वा अन्तो पडिग्गहंसि उवइत्ता दलएज्जा, सव्वा विणं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ।
तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं सयं पिण्डं साहणिय अन्तो पडिग्गहंसि उवइत्ता दलज्जा, सव्वा विणं सा एगा दत्तो वत्तव्वं सिया ।
४४. संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पाणि पडिग्गहियस्स (गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुपविट्ठस्स)
जावइयं - जावइयं केइ अन्तो पाणिंसि उवइत्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं
सिया ।
तत्थ से केइ छव्वएण वा, दूसएण वा, वालएण वा अन्तो पाणिंसि उवइत्ता दलएज्जा, सव्वा विणं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ।
तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं सयं पिण्डं साहणिय अन्तो पाणिंसि उवइत्ता दलएज्जा सव्वा विसाएगा दत्ती वत्तवं सिया ।
४३. दत्तियों की संख्या का अभिग्रह करने वाला पात्रधारी निर्ग्रन्थ गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश करे, इस समय
१. आहार देने वाला गृहस्थ पात्र में जितनी बार झुकाकर आहार दे, उतनी ही 'दत्तियां' कहनी
चाहिए ।
२. आहार देने वाला गृहस्थ यदि छबड़ी से, वस्त्र से या चालनी से बिना रुके पात्र में झुकाकर दे, वह सब 'एक दत्ति' कहनी चाहिए।
३. आहार देने वाले गृहस्थ जहां अनेक हों और वे सब अपना-अपना आहार सम्मिलित कर बिना रुके पात्र में झुकाकर दें तो वह सब 'एक दत्ति' कहनी चाहिए।
४४. दत्तियों की संख्या का अभिग्रह करने वाला करपात्रभोजी निर्ग्रन्थ गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश करे, इस समय
१. आहार देने वाला गृहस्थ जितनी बार झुकाकर भिक्षु के हाथ में आहार दे, उतनी ही 'दत्तियां' कहनी चाहिए ।