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________________ आठवां उद्देशक ] [ ४१५ (४) अयमन्यः विकल्पः कुक्कुटं अंडकोपमे कवले - अथवा कुकडी के अंडे के प्रमाण जितना कवल, यह भी अर्थ का एक विकल्प है। - 'ऊणोयरिया' - अभि. रा. कोष भा. २, पृ. ११८२ उपर्युक्त व्याख्यास्थलों पर विचार करने से यह ज्ञात होता है कि 'कुक्कुडिअडंग' इतना शब्द न होने पर भी सूत्राशय स्पष्ट हो जाता है और यह शब्द भ्रमोत्पादक भी है, अतः यह शब्द कभी किसी द्वारा प्रक्षिप्त किया गया हो और व्याख्याकारों ने इसे मौलिक पाठ समझ कर ज्यों-त्यों करके संगति करने की कोशिश की हो। व्याख्या में यह भी कहा गया है कि एक दिन पूर्ण आहार करने वाला 'प्रकामभोजी' है, अनेक दिन पूर्ण आहार करने वाला 'निकामभोजी' है और ३२ कवल से भी अधिक खाने वाला 'अतिभोजी' है। यहां एक प्रश्न उपस्थित होता है कि बत्तीस कवल के आहार से जो संपूर्ण माप कहा गया है वह प्रत्येक बार के भोजन की अपेक्षा से है या अनेक बार के भोजन की अपेक्षा से ? तथा दूध, छाछ आदि पेय पदार्थों का समावेश इन ३२ कवल में किस प्रकार होता है ? समाधान- आचारशास्त्रों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि दिन में एक बार भोजन करना ही भिक्षु का शुद्ध उत्सर्ग आचार है । आगमों में अनेक जगह अन्य समय में आहार करने का जो विधान है, उसे आपवादिक विधान समझना चाहिए। आपवादिक आचरण को सदा के लिए प्रवृत्ति रूप में स्वीकार कर लेना शिथिलाचार है । अतः कारणवश अनेक बार या सुबह शाम आहार करना ही अपवादमार्ग है । उत्सर्गमार्ग तो एक बार खाने का ही है । अतः आगमोक्त एक बार के औत्सर्गिक आहार करने की अपेक्षा यह विधान है। । जितने आहार से पेट पूर्ण भर जाय, पूर्ण तृप्ति हो जाय अथवा जिससे भूख रहने का या और कुछ खाने का मन न हो, ऐसी संपूर्ण मात्रा को ३२ कवल में विभाजित कर लेना चाहिए। इसमें दूध रोटी फल आदि सभी को समाविष्ट समझना चाहिए। अनुमान से जितने - जितने कवल प्रमाण भूख रखी जाय, उतनी - उतनी ऊनोदरी समझनी चाहिए । समान्यतया उत्सर्ग मार्ग से भिक्षु का आहार विगयरहित होता है, अतः रोटी आदि की अपेक्षा ३२ कवल समझना और भी सरल हो जाता है । इसी के आधार से यह फलित होता है कि कारण से अनेक बार किये जाने वाले आहार का कुल योग ३२ कवल होना चाहिए। अतः अनेक बार आहार करना हो तो ३२ कवलों को विभाजित करके समझ लेना चाहिए । अनेक दिनों तक एक वक्त विगयरहित सामान्य आहार करके कुल खुराक का माप रोटी की संख्या में कायम किया जा सकता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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