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________________ ४१४] [व्यवहारसूत्र 'अंशिका-ऊनोदरी' शब्द का प्रयोग किया गया है। इसमें आहार के चार भाग में से तीन भाग का आहार किया जाता है, अतः यह त्रिभागप्राप्त आहाररूप ऊनोदरी है। अथवा इसे 'पाव ऊनोदरी' भी कह सकते हैं। इस स्थल पर लिपि दोष से प्रतियों के पाठभेद हो गये हैं, अत: यहां अन्य आगमों से पाठ सुधारा गया है। प्रतियों में 'ओमोयरिए''पत्तोमोयरिए' ऐसे पाठ उपलब्ध होते हैं। . (५) किंचित्-ऊनोदरी-३१ कवल प्रमाण आहार करने पर एक कवल की ही ऊनोदरी होती है जो ३२ कवल आहार की अपेक्षा अल्प होने से 'किंचित् ऊनोदरी' कहा गया है। सूत्र के अंतिम अंश से यह स्पष्ट किया गया है कि इन पांच में से किसी भी प्रकार की ऊनोदरी करने वाला भिक्षु प्रकामभोजी (भरपेट खाने वाला) नहीं होता। ३२ कवल रूप पूर्ण आहार करने वाला प्रमाणप्राप्तभोजी कहा गया है। उसके किंचित् भी ऊनोदरी नहीं होती है। भिक्षु को इन्द्रियसंयम एवं ब्रह्मचर्यसमाधि के लिए सदा ऊनोदरी तप करना आवश्यक है, अर्थात् उसे कभी भरपेट आहार नहीं करना चाहिए। ___ आचा. श्रु. १ अ. ९ उ. ४ में भगवान् महावीर स्वामी के आहार-विहार का वर्णन करते हुए कहा गया है कि भगवान् स्वस्थ अवस्था में भी सदा ऊनोदरीतप युक्त आहार करते थे। यथा ओमोयरियं चाएइ अपुढे वि भगवं रोगेहिं। गा. १ नीति में भी कहा गया है कि संत सती ने सूरमा, चौथी विधवा नार। ऐता तो भूखा भला धाया करे उत्पात॥ सूत्र में कवलप्रमाण को स्पष्ट करने के लिए 'कुक्कुटिअंडकप्रमाण' ऐसा विशेषण लगाया गया है। इस विषय में व्याख्याग्रन्थों में इस प्रकार स्पष्टीकरण किये गए हैं (१) निजकस्याहारस्य सदा यो द्वात्रिंशत्तमो भागो तत् कुक्कुटीप्रमाणे-अपनी आहार की मात्रा का जो सदा बत्तीसवां भाग होता है, वह कुक्कुटीअंडकप्रमाण अर्थात् उस दिन का कवल कहा जाता है। (२) कुत्सिता कुटी-कुक्कुटी शरीरमित्यर्थः। तस्याः शरीररूपायाः कुक्कुट्या अंडकमिव अंडकं-मुखं-अशुचि मय यह शरीर ही कुकुटी है, उसका जो मुख है वह कुकुटी का अंडक कहा गया है। (३) यावत्प्रमाणमात्रेण कवलेन मुखे प्रक्षिप्यमाणेन मुखं न विकृतं भवति तत्स्थलं कुक्कुट-अंडक-प्रमाणम्-जितना बड़ा कवल मुख में रखने पर मुख विकृत न दिखे उतने प्रमाण का एक कवल समझना चाहिए। उस कवल के समावेश के लिये जो मुख का भीतरी आकार बनता है, उसे कुक्कुटी-अंडकप्रमाण समझना चाहिए।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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