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________________ आठवां उद्देशक] [४१३ ___३. अपने मुखप्रमाण सोलह कवल आहार करने से द्विभागप्राप्त आहार और अर्द्ध ऊंनोदरी कही जाती है। ४. अपने मुखप्रमाण चौबीस कवल आहार करने से त्रिभागप्राप्त आहार और एक भाग ऊनोदरिका कही जाती है। ५. अपने मुखप्रमाण एकतीस कवल आहार करने से किंचित् ऊनोदरिका कही जाती है। ६. अपने मुख प्रमाण बत्तीस कवल आहार करने से प्रमाण प्राप्त आहार कहा जाता है। इससे एक भी कवल कम आहार करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ प्रकामभोजी नहीं कहा जाता है। विवेचन-भगवतीसूत्र शतक ७ तथा श. २५ एवं उववाईसूत्र में भी ऊनोदरी तप के विषय में ऐसा ही कथन है। आहारद्रव्य-ऊनोदरी' के स्वरूप के साथ ही वहां उपकरण-ऊनोदरी आदि भेदों का भी स्पष्टीकरण किया गया है। उत्तरा. अ. ३० के तप-वर्णन में आहार-ऊनोदरी का ही कथन किया है। उपकरण-ऊनोदरी आदि भेदों की विवक्षा वहां नहीं की है। वहां पर आहार-ऊनोदरी के ५ भेद कहे हैं-(१) द्रव्य, (२) क्षेत्र, (३) काल, (४) भाव और (५) पर्याय से। (१) द्रव्य से-अपनी पूर्ण खुराक से कम खाना। (२) क्षेत्र से-ग्रामादि क्षेत्र संबंधी अभिग्रह करना अथवा भिक्षाचरी में भ्रमण करने के मार्ग का पेटी आदि छः आकार में अभिग्रह करना। (३) काल से-गोचरी लाने व खाने का प्रहर, घंटा आदि रूप में अभिग्रह करना। (४) भाव से-घर में रहे पदार्थों से या स्त्री पुरुषों के वर्ण, वस्त्र-भाव आदि से अभिग्रह करना। (५) पर्याय से-उपरोक्त द्रव्यादि चार प्रकारों में से एक-एक का अभिग्रह करना उन-उन भेदों में समाविष्ट है और इन चार में से अनेक अभिग्रह एक साथ करना 'पर्याय ऊनोदरी' है। प्रस्तुत सूत्र में इन पांचों में से प्रथम द्रव्य ऊनोदरी का निम्न पांच भेदों द्वारा वर्णन किया है (१) अल्पाहार-एक कवल, दो कवल यावत् आठ कवल-प्रमाण आहार करने का अल्पाहार ऊनोदरी होती है। (२) अपार्ध-ऊनोदरी-नव से लेकर बारह कवल अथवा पन्द्रह कवल प्रमाण आहार करने पर आधी खुराक से कम आहार किया जाता है। उसे 'अपार्द्ध ऊनोदरी' कहते हैं, अर्थात् पहली अल्पाहार रूप ऊनोदरी है और दूसरी आधी खुराक से कम आहार करने रूप ऊनोदरी है। (३) द्विभागप्राप्त ऊनोदरी (अर्द्ध ऊनोदरी)-१६ कवल प्रमाण आहार करने पर अर्द्ध खुराक का आहार किया जाता है जो पूर्ण खुराक के चार भाग विवक्षित करने पर दो भाग रूप होती है, अतः इसे सूत्र में द्विभागप्राप्त ऊनोदरी' कहा है और दो भाग की ऊनोदरी होने से उसे 'अर्द्ध ऊनोदरी' भी कह सकते हैं। (४) त्रिभागप्राप्त-अंसिका ऊनोदरी-२४ कवल (२७ से ३० कवल) प्रमाण आहार करने पर त्रिभाग आहार होता है और एक भाग आहार की ऊनोदरी होती है। इसके लिए सूत्र में
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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