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चौथा उद्देशक]
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भाष्य में बताया गया है कि आचार्य-उपाध्याय के पास साधुओं की संख्या अधिक हो, अन्य गच्छ से अध्ययन हेतु आये अनेक प्रतीच्छक साधु हों, पाहुने साधुओं का आवागमन अधिक हो अथवा वृद्ध आदि कारुणिक साधु अधिक हों, इत्यादि किसी भी कारण से भिक्षुओं को अध्ययन या तप उपधान के बाद या प्रायश्चित्त वहन करने के बाद आवश्यक विकृतिक पदार्थों के न मिलने पर कृशता अधिक बढ़ती हो तो उन भिक्षुओं को नियत दिन के लिये अर्थात्-५ दिन संख्या का निर्देश कर 'वजिका' में जाने की आज्ञा दी जाती है। उसी अपेक्षा से सूत्र का संपूर्ण विधान है। सामान्य विचरण करने हेतु आज्ञा लेने का कथन उद्दे. ३ सूत्र २ में है। चर्याप्रविष्ट एवं चर्यानिवृत्त भिक्षु के कर्तव्य
२०. चरियापविढे भिक्खू जाव चउराय-पंचरायाओ थेरे पासेज्जा,
सच्चेव आलोयणा, सच्चेव पडिक्कमणा, सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।
२१. चरियापविढे भिक्खू परं चउराय-पंचरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा, पुणो पडिक्कमेज्जा, पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चंपि ओग्गहे अणुन्नवेयव्वे सिया।
कप्पइसे एवं वदित्तए, 'अणुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदंधुवं नितियं वेउट्टियं।' तओ पच्छा काय-संफासं।
२२. चरियानियट्टे भिक्खू जाव चउराय-पंचरायाओ थेरे पासेज्जा,
सच्चेव आलोयणा, सच्चेव पडिक्कमणा, सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुन्नवणा चिट्ठइ, अहालंदमवि ओग्गहे।
२३. चरियानियट्टे भिक्खू परं चउराय-पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, पुणो आलोएज्जा, पुणो पडिक्कमेज्जा, पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खूभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुनवेयव्वे सिया।
कप्पड़ से एवं वइत्तए-'अणुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्टियं।' तओ पच्छा काय-संफासं।
२०. चर्या में प्रविष्ट भिक्षु यदि चार-पांच रात की अवधि में स्थविरों को देखे (मिले) तो उन भिक्षुओं को वही आलोचना, वही प्रतिक्रमण और कल्पपर्यंत रहने के लिये वही अवग्रह की पूर्वानुज्ञा रहती है।
२१. चर्या में प्रविष्ट भिक्षु यदि चार-पांच रात के बाद स्थविरों को देखे (मिले) तो वह पुनः आलोचना-प्रतिक्रमण करे और आवश्यक दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित्त में उपस्थित हो।
भिक्षुभाव (संयम की सुरक्षा) के लिए उसे दूसरी बार अवग्रह की अनुमति लेनी चाहिए। वह