SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा उद्देशक ] [ ३४७ १६. आयरिय - उवज्झाए असरमाणे परं चउराय-पंचरायाओ कप्पागं भिक्खुं नो उवट्ठावेइ कप्पाए, अत्थियाइं से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नत्थि से केई छेए वा परिहारे वा । त्थियाइं से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छेए वा परिहारे वा । १७. आयरिय-उवज्झाए सरमाणे वा असरमाणे वा परं दसराय कप्पाओ कप्पागं भिक्खुं नो उट्ठावेइ कप्पाए, अत्थियाई से केइ माणणिज्जे कप्पाए नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा । १५. आचार्य या उपाध्याय स्मरण होते हुए भी बड़ीदीक्षा के योग्य भिक्षु को चार-पांच रात के बाद भी बड़ीदीक्षा में उपस्थापित न करे और उस समय यदि उस नवदीक्षित के कोई पूज्य पुरुष की बड़ीदीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षाछेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। यदि उस नवदीक्षित के बड़ीदीक्षा लेने योग्य कोई पूज्य पुरुष न हो तो उन्हें चार-पांच रात्रि उल्लंघन करने का छेद या तप रूप प्रायश्चित्त आता है । १६. आचार्य या उपाध्याय स्मृति में न रहने से बड़ीदीक्षा के योग्य भिक्षु को चार-पांच रात के बाद भी बड़ीदीक्षा में उपस्थापित न करे, उस समय यदि वहां उस नवदीक्षित के कोई पूज्य पुरुष की बड़ीदीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षाछेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। यदि उस नवदीक्षित के बड़ीदीक्षा लेने योग्य कोई पूज्य पुरुष न हो तो उन्हें चार-पांच रात्रि उल्लंघन करने का दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित्त आता है । १७. आचार्य या उपाध्याय स्मृति में रहते हुए या स्मृति में न रहते हुए भी बड़ीदीक्षा के योग्य भिक्षु को दस दिन के बाद बड़ीदीक्षा में उपस्थापित न करे, उस समय यदि उस नवदीक्षित के कोई पूज्य पुरुष की बड़ीदीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षाछेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है । यदि उस नवदीक्षित के बड़ीदीक्षा के योग्य कोई पूज्य पुरुष न हो तो उन्हें दस रात्रि उल्लंघन करने के कारण एक वर्ष तक आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद पर नियुक्त करना नहीं कल्पता है। विवेचन - प्रथम एवं अन्तिम तीर्थंकर के शासन में भिक्षुओं को सामायिकचारित्र रूप दीक्षा देने के बाद छेदोपस्थापनीयचारित्र रूप बड़ीदीक्षा दी जाती है। उसकी जघन्य कालमर्यादा सात अहोरात्र की है अर्थात् काल की अपेक्षा नवदीक्षित भिक्षु सात रात्रि के बाद कल्पाक (बड़ीदीक्षा के योग्य) कहा है और गुण की अपेक्षा आवश्यकसूत्र सम्पूर्ण अर्थ एवं विधि सहित कंठस्थ कर लेने पर, जीवादि का एवं समितियों का सामान्य ज्ञान कर लेने पर, दशवैकालिक सूत्र के चार अध्ययन की अर्थ सहित वाचना लेकर कंठस्थ कर लेने पर एवं प्रतिलेखन आदि दैनिक क्रियाओं का कुछ अभ्यास कर लेने पर 'कल्पाक' कहा जाता है। इस प्रकार कल्पाक (बड़ीदीक्षायोग्य) होने पर एवं अन्य परीक्षण हो जाने पर उस नवदीक्षित भक्षु को बड़ीदीक्षा (उपस्थापना) दी जाती है । योग्यता के पूर्व बड़ीदीक्षा देने पर नि. उ. ११ सू. ८४ के अनुसार प्रायश्चित्त आता है । उक्त योग्यतासंपन्न कल्पाक भिक्षु को सूत्रोक्त समय पर बड़ीदीक्षा न देने पर आचार्य - उपाध्याय को प्रायश्चित्त आता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy