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[बृहत्कल्पसूत्र ७. सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त से पूर्व भिक्षाचर्या करने की प्रतिज्ञा वाला किन्तु सूर्योदय या सूर्यास्त के सम्बन्ध में संदिग्ध-समर्थ-भिक्षु अशन यावत् स्वादिम ग्रहण कर आहार करता हुआ यदि यह जाने कि
___ सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है, तो उस समय जो आहार मुंह में है, हाथ में है, पात्र में है उसे परठ दे तथा मुख आदि की शुद्धि कर ले तो वह जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है।
यदि उस आहार को वह स्वयं खावे या अन्य निर्ग्रन्थ को दे तो उसे रात्रिभोजनसेवन का दोष लगता है अत: वह अनुद्घातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का पात्र होता है।
८. सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त से पूर्व भिक्षाचर्या करने की प्रतिज्ञा वाला तथा सूर्योदय या सूर्यास्त के सम्बन्ध में असंदिग्ध-असमर्थ-भिक्षु अशन यावत् स्वादिम ग्रहण कर आहार करता हुआ यदि यह जाने कि -सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है तो उस समय जो आहार मुंह में है, हाथ में है, पात्र में है उसे परठ दे तथा मुख आदि की शुद्धि कर ले तो वह जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है।
यदि उस आहार को वह स्वयं खावे या अन्य निर्ग्रन्थ का दे तो उसे रात्रिभोजनसेवन का दोष लगता है। अतः वह अनुद्घातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का पात्र होता है।
___९. सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त से पूर्व भिक्षाचर्या करने की प्रतिज्ञा वाला किन्तु सूर्योदय या सूर्यास्त के सम्बन्ध में संदिग्ध-असमर्थ-भिक्षु अशन यावत् स्वादिम ग्रहण कर आहार करता हुआ यह जाने कि सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है तो उस समय जो आहार मुंह में है, हाथ में है, पात्र में है उसे परठ दे तथा मुख आदि की शुद्धि कर ले तो वह जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है।
यदि उस आहार को वह स्वयं खावे या अन्य निर्ग्रन्थ को दे तो उसे रात्रिभोजन सेवन का दोष लगता है। अतः वह अनुद्घातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का पात्र होता है।
विवेचन-प्रस्तुत इन चार सूत्रों मेंप्रथम सूत्र संस्तृत एवं निर्विचिकित्स निर्ग्रन्थ की अपेक्षा से कहा गया है। द्वितीय सूत्र संस्तृत एवं विचिकित्स निर्ग्रन्थ की अपेक्षा से कहा गया है। तृतीय सूत्र असंस्तृत एवं निर्विचिकित्स निर्ग्रन्थ की अपेक्षा से कहा गया है। चतुर्थ सूत्र असंस्तृत एवं विचिकित्स निर्ग्रन्थ की अपेक्षा से कहा गया है। संस्तृत-शब्द का अर्थ है-समर्थ, स्वस्थ और प्रतिदिन पर्याप्तभोजी भिक्षु।
असंस्तृत-शब्द का अर्थ है-असमर्थ, अस्वस्थ तथा तेला आदि तपश्चर्या करने वाला तपस्वी भिक्षु।
असंस्तृत तीन प्रकार के होते हैं-१. तप-असंस्तृत, २. ग्लान-असंस्तृत, ३. अध्वानअसंस्तृत।
१. तप-असंस्तृत-तपश्चर्या करने से जो निर्ग्रन्थ असमर्थ हो गया है। २. ग्लान-असंस्तृत-रोग आदि से जो निर्ग्रन्थ अशक्त हो गया है। ३. अध्वान-असंस्तृत-मार्ग की थकान से जो निर्ग्रन्थ क्लान्त हो गया है।