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________________ पांचवां उद्देशक] [२३१ अणुग्गए सूरिए, अत्थमिए वा से जं च आसयंसि, जंच पाणिंसि, जं च पडिग्गहे ते विगिंचमाणे वा, विसोहेमाणे वा णो अइक्कमइ। तं अप्पणा भुंजमाणे, अन्नेसिं वा दलमाणे, राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं। ७. भिक्खू य उग्गयवित्तीण अणथमियसंकप्पे संथडिए विइगिच्छासमावण्णे असणं वा जाव साइमं वा पडिग्गाहित्ता आहारं आहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा ___ अणुग्गए सूरिए, अत्थमिए वा से जं च आसयंसि, जं च पाणिंसि, जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो जइक्कमइ। ___ तंअप्पणा भुंजमाणे, अन्नेसिंवा दलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं। ८.भिक्खूय उग्गयवित्तीय अणथमियसंकप्पे असंथडिए निव्वितिगिच्छे असणं वा जाव साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारं आहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा ____ अणुग्गए सूरिए, अत्थमिए वा से जंच आसयंसि, जं च पाणिंसि, जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा, विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ। तंअप्पणा भुंजमाणे अन्नेसिंवादलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं। ९.भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणथमियसंकल्पे असंथडिए विइगिच्छासमावण्णे असणं वा जाव साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारं आहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा ___अणुग्गए सूरिए, अत्थमिए वा से जं च आसयंसि, जं च पाणिंसि, जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा, विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ। अप्पणाभुंजमाणे, अन्नेसिंवादलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं। ६. सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त से पूर्व भिक्षाचर्या करने की प्रतिज्ञा वाला तथा सूर्योदय या सूर्यास्त के सम्बन्ध में असंदिग्ध-समर्थ-भिक्षु अशन यावत् स्वादिम ग्रहण कर आहार करता हुआ यदि यह जाने कि सूर्योदय नहीं हुआ है अथवा सूर्यास्त हो गया है, तो उस समय जो आहार मुंह में है, हाथ में है, पात्र में है, उसे परठ दे तथा मुख आदि की शुद्धि कर ले तो वह जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। यदि उस आहार को वह स्वयं खावे या अन्य निर्ग्रन्थ को दे तो उसे रात्रिभोजनसेवन का दोष लगता है। अतः वह अनुद्घातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का पात्र होता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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