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________________ सूत्र १ चौथा उद्देशक] [२२७ इसी प्रकार प्रतिपादित ऊंचाई से नीचे उपाश्रय में रहने पर भी चतुर्लघु प्रायश्चित्त आता है। भाष्यकार ने यह भी बताया है कि वर्षावास में उक्त प्रकार के उपाश्रय में रहते हुए यदि तृणाच्छादन में सांप का निवास प्रतीत हो तो उसे विद्या से मंत्रित कर दे। यदि ऐसा न कर सके तो उक्त आच्छादन के नीचे चंदोवा बंधवा दे। ऐसा भी सम्भव न हो तो ऊपर बांस की चटाई लगा देना चाहिए, जिससे कि ऊपर से सांप द्वारा लटककर काटने का भय न रहे, यदि चटाई लगाना भी सम्भव न हो तो रहने वाले साधुओं को चिलमिलिका का उपयोग करना चाहिए। उपयुक्त सर्व कथन उस उपाश्रय या वसति का है, जो कि घास-फूस आदि से निर्मित और आच्छादित है या जिसके ऊपरी भाग में घास आदि रखा हो, किन्तु पत्थर आदि से निर्मित मकान में रहने का कोई निषेध नहीं है। फिर भी योग्य ऊंचाई वाले मकान में रहना संयम एवं शरीर के लिये समाधिकारक होता है। इसलिए योग्य ऊंचाई वाली छत हो, ऐसे मकान में ही यथासम्भव ठहरना चाहिए। चौथे उद्देशक का सारांश हस्तकर्म, मैथुनसेवन एवं रात्रिभोजन का अनुद्घातिक प्रायश्चित्त आता है। तीन प्रकार के दोष सेवन करने पर पारांचिक प्रायश्चित्त आता है। तीन प्रकार के दोष सेवन करने पर अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त आता है। ४-९ तीन प्रकार के नपुंसकों को दीक्षित, मुंडित या उपस्थापित करना आदि नहीं कल्पता। १०-११ तीन अवगुण वाले को वाचना नहीं देना चाहिए, किन्तु तीन गुण वाले को वाचना देना योग्य है। १२-१३ तीन प्रकार के व्यक्तियों को समझाना कठिन होता है और तीन प्रकार के व्यक्तियों को समझाना सरल होता है। सेवा करने वाले के अभिप्राय से स्पर्श आदि करने पर भिक्षु मैथुन सेवन के संकल्प युक्त सुखानुभव करे तो उसे चतुर्थ व्रत के भंग होने का प्रायश्चित्त आता है। प्रथम प्रहर में ग्रहण किया आहार-पानी चतुर्थ प्रहर में नहीं रखना। दो कोस से आगे आहार-पानी नहीं ले जाना। अनाभोग से ग्रहण किये अनेषणीय आहारादि को नहीं खाना, किन्तु अनुपस्थापित नवदीक्षित भिक्षु खा सकता है। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के साधुओं को कोई भी औद्देशिक आहार ग्रहण करना नहीं कल्पता है, अन्य तीर्थंकर के साधुओं को कल्पता है। अन्य गण में अध्ययन करने हेतु, गणपरिवर्तन करने हेतु एवं अध्ययन कराने हेतु जाना हो तो आचार्य आदि की आज्ञा लेकर सूत्रोक्त विधि से कोई भी साधु या पदवीधर जा सकता है। Kuww १४-१५ २०-२८
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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