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________________ [बृहत्कल्पसूत्र कालधर्मप्राप्त भिक्षु को उसके साधर्मिक साधु प्रतिहारिक उपकरण लेकर गांव के बाहर एकान्त में परठ सकते हैं। क्लेश को उपशांत किये बिना भिक्षु को गोचरी आदि नहीं जाना चाहिये। क्लेश को उपशांत करने पर यथोचित प्रायश्चित्त ही देना एवं लेना चाहिए। आचार्य परिहारतप वहन करने वाले को साथ ले जाकर एक दिन गोचरी दिलवाए, बाद में आवश्यक होने पर ही वैयावृत्य आदि कर सकते हैं। अधिक प्रवाह वाली नदियों को एक मास में एक बार से अधिक बार पार नहीं करना चाहिए, किन्तु जंघार्ध प्रमाण जलप्रवाह वाली नदी को सूत्रोक्त विधि से एक मास में अनेक बार भी पार किया जा सकता है। घास के बने मकानों की ऊंचाई कम हो तो वहां नहीं ठहरना चाहिए, किन्तु अधिक ऊंचाई हो तो ठहरा जा सकता है। ३३-३६ उपसंहार सूत्र १-३ ४-१३ १४-१५ १६-१७ १८ . इस उद्देशक मेंअनुद्घातिक, पारांचिक, अनवस्थाप्य प्रायश्चित्तों का, दीक्षा, वाचना एवं शिक्षा के योग्यायोग्यों का, मैथुन भावों के प्रायश्चित्त का, आहार के क्षेत्र, काल की मर्यादा का, अनैषणीय आहार के उपयोग का, कल्पस्थित अकल्पस्थित के कल्पनीयता का, अध्ययन आदि के लिए अन्य गण में जाने का, कालधर्मप्राप्त भिक्षु को एकान्त में परठने का, क्लेश युक्त भिक्षु के रखने योग्य विवेक का, परिहारतप वाले भिक्षु के प्रति कर्तव्यों का, नदी पार करने के कल्प्याकल्प्य का, घास वाले मकानों के कल्प्याकल्प्य इत्यादि विषयों का कथन किया गया है। २०-२८ MP ३१ . ३३-३६ ॥चौथा उद्देशक समाप्त॥
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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