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________________ १९८] [बृहत्कल्पसूत्र इसके दो भेद हैं-उद्घातिम अर्थात् लघुप्रायश्चित्त और अनुद्घातिम अर्थात् गुरुप्रायश्चित्त। इन दोनों के भी मासिक और चातुर्मासिक के भेद से दो-दो भेद होते हैं। यदि राजसत्ता या प्रेतबाधा आदि से परवश होने पर व्रत-विराधना हो तो १. लघुमासतप (उद्घातिम ) प्रायश्चित्त में जघन्य ४, मध्यम १५ और उत्कृष्ट २७ एकासन करना आवश्यक है। २. गुरुमासतप (अनुद्घातिम) प्रायश्चित्त में क्रमश: ४ नीवी, १५ नीवी और ३० नीवी करना आवश्यक है। ३. लघुचातुर्मासिक तप में क्रमश ४ आयंबिल, ६० नीवी और १०८ उपवास करना आवश्यक है। ४. गुरुचातुर्मासिक तप में क्रमशः ४ उपवास, ४ बेले और १२० उपवास या ४ मास का दीक्षाछेद आवश्यक है। यदि आतुरता से जानबूझ कर व्रत-विराधना हो तो१. लघुमास में जघन्य ४, मध्यम १५ और उत्कृष्ट २७ आयंबिल करना आवश्यक है। २. गुरुमास में जघन्य ४, मध्यम १५ और उत्कृष्ट ३० आयंबिल करना आवश्यक है। ३. लघुचातुर्मासिक में जघन्य ४ उपवास, मध्यम ४ बेले और उत्कृष्ट १०८ उपवास करना आवश्यक है। . ४. गुरुचातुर्मासिक में जघन्य ४ बेले, ४ दिन का दीक्षा-छेद, मध्यम में ४ तेले तथा ६ दिन का दीक्षा-छेद और उत्कृष्ट में १२० उपवास तथा ४ मास का दीक्षा-छेद आवश्यक है। यदि मोहनीयकर्म के प्रबल उदय से व्रत की विराधना हुई है तो १. लघुमासप्रायश्चित्त में जघन्य ४ उपवास, मध्यम १५ उपवास और उत्कृष्ट २७ उपवास करना आवश्यक है। २. गुरुमासप्रायश्चित्त में जघन्य ४ उपवास, मध्यम १५ उपवास और उत्कृष्ट ३० उपवास करना आवश्यक है। ३. लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त में जघन्य ४ बेले, पारणे में आयंबिल, मध्यम में ४ तेले, पारणे में आयंबिल और उत्कृष्ट १०८ उपवास और पारणे में आयंबिल करना आवश्यक है। ४. गुरुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त में जघन्य ४ तेले, पारणे में आयंबिल या ४० दिन का दीक्षाछेद, मध्यम १५ तेले, पारणे में आयंबिल या ६० दिन का दीक्षा-छेद और उत्कृष्ट १२० उपवास और पारणे में आयंबिल या मूल (नई दीक्षा) या १२० दिन का छेद प्रायश्चित्त आवश्यक है। - भगवान् महावीर के शासन में उत्कृष्ट प्रायश्चित्त छह मास का होता है, इससे अधिक प्रायश्चित्त देना आवश्यक हो तो दीक्षा-छेद का प्रायश्चित्त दिया जाता है। लघु छह मास में १६५ उपवास और गुरु छह मास में १८० उपवासों का विधान है। प्रायश्चित्त देने वाले आचार्यादि शिष्य की शक्ति और व्रत-भंग की परिस्थिति को देखकर यथायोग्य हीनाधिक प्रायश्चित्त भी देते हैं।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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