________________
दूसरा उद्देशक]
[१६३ जो वहां एक या दो रात से अधिक रहता है वह मर्यादा उल्लंघन के कारण दीक्षा-छेद या तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र होता है।
विवेचन-जिस प्रकार में सारी रात या दिन-रात अग्नि जलती है, उस (कुम्भकारशाला या लोहारशाला आदि) में भिक्षु को ठहरना नहीं कल्पता है। यदि ठहरने के स्थान में एवं गमनागमन के मार्ग में अग्नि नहीं जलती हो, किन्तु अन्यत्र कहीं भी जलती हो तो वहां ठहरना कल्पता है।
इसी प्रकार सम्पूर्ण रात्रि या दिन-रात जहां दीपक जलता है, वह स्थान भी अकल्पनीय है। अग्नि या दीपक युक्त स्थान में ठहरने के दोष
१. अग्नि के या दीपक के निकट से गमनागमन करने में अग्निकाय के जीवों की विराधना होती है । २. हवा से कोई उपकरण अग्नि में पड़कर जल सकता है। ३. दीपक के कारण आने वाले त्रस जीवों की विराधना होती है। ४. शीतनिवारण करने का संकल्प उत्पन्न हो सकता है।
आचा. श्रु. २, अ. २, उ. ३ में भी अग्नियुक्त स्थान में ठहरने का निषेध है एवं निशीथ उ. १६ में इसका प्रायश्चित्त विधान है।
इन आगमस्थलों में अल्पकालीन अग्नि या दीपक का निषेध नहीं किया है, किन्तु इसी सूत्र के प्रथम उद्देशक में पुरुष सागारिक उपाश्रय में साधु को एवं स्त्री सागारिक उपाश्रय में साध्वी को ठहरने का विधान है, जहां अग्नि या दीपक जलने की सम्भावना भी रहती है। अतः इन सूत्रों से सम्पूर्ण रात्रि अग्नि जलने वाले स्थानों का निषेध समझना चाहिए।
अन्य विवेचम पूर्व सूत्र के समान समझना चाहिए। खाद्यपदार्थयुक्त मकान में रहने के विधि-निषेध और प्रायश्चित्त
८. उवस्सयस्स अंतोवगडाए पिण्डए वा, लोयए वा, खीरं वा, दहिं वा, नवणीयं वा, सप्पिंवा, तेल्लेवा, फाणियंवा, पूर्ववा, सक्कुली वा, सिहरिणी वा उक्खित्ताणि वा, विक्खित्ताणि वा, विइगिण्णाणि वा, विप्पइण्णाणि वा, नो कप्पइ निग्गंथाण वा अहालंदमवि वत्थए।
९. अह पुण एवं जाणेज्जा-नो उक्खित्ताई, नो विक्खित्ताई, नो विइकिण्णाई, नो विप्पइण्णाई।
रासिकडाणि वा, पुंजकडाणि वा, भित्तिकडाणिवा, कुलियाकडाणिवा, लंछियाणि वा, मुद्दियाणि वा, पिहियाणि वा कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीणं वा हेमंत-गिम्हासु वत्थए।
१०. अह पुण एवं जाणेज्जा-नो रासिकडाइ जाव नो कुलियाकडायं, कोट्ठाउत्ताणि वा, पल्लाउत्ताणि वा, मंचाउत्ताणि वा, मालाउत्ताणि वा, कुंभिउत्ताणि वा, करभि-उत्ताणि वा, ओलित्ताणि वा, विलित्ताणि वा, पिहियाणि वा, लंछियाणि वा, मुद्दियाणि वा कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वासावासं वत्थए।
८. उपाश्रय के भीतर में पिण्डरूप खाद्य, लोचक-मावा आदि, दूध, दही, नवनीत, घृत, तेल,