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[दशाश्रुतस्कन्ध उद्धटु पाए रीएज्जा, साहटु पाए रीएज्जा, तिरिच्छं वा पायंकटुरीएज्जा, सति परक्कमे संजयामेव परिक्कमेजा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा।
केवलं से नायए पेजबंधणे अवोच्छिन्ने भवइ, एवं से कप्पति नायविहिं एत्तए।
तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्तेभिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे परिगाहित्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए।
तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वउत्तेभिलिंगसूवे, पच्छाउत्तेचाउलोदणे, कप्पइसे भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए।
तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पुव्वाउत्ताई, कप्पंति से दोऽवि पडिगाहित्तए। तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ताई नो कप्पंति दोऽवि पडिगाहित्तए। जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए। जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते नो स कप्पइ पडिगाहित्तए। तस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स कप्पति उवं वदित्तए'समणोवासगस्स पडिमापडिवन्नस्स भिक्खं दलयह।' तं च एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणं केइ पासित्ता वदिज्जाप०-केइ आउसो! 'तुमं वत्तव्वं सिया'? उ०-'समणोवासए पडिमापडिवण्णए अहमंसी' ति वत्तव्वं सिया।
से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाहं वा, दुआई वा, तिआहे वा जाव उक्कोसेण एक्कारसमासे विहरेजा।
से तं एकादसमा उवासगपडिमा। एयाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एकारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ।
हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है उन निर्वाणप्राप्त भगवान् महावीर ने ऐसा कहा है-इस जैन प्रवचन में स्थविर भगवन्तों ने ग्यारह उपासक-प्रतिमाएँ कही हैं।
प्र०-भगवन् ! वे कौन-सी ग्यारह उपासक-प्रतिमाएँ स्थविर भगवन्तों ने कही हैं ? उ०-वे ग्यारह उपासक-प्रतिमाएँ स्थविर भगवन्तों ने इस प्रकार कही हैं, जैसे
१. दर्शनप्रतिमा, २. व्रतप्रतिमा, ३. सामायिकप्रतिमा, ४. पौषधप्रतिमा, ५. कायोत्सर्गप्रतिमा, ६. ब्रह्मचर्य प्रतिमा, ७. सचित्तत्यागप्रतिमा, ८. आरम्भत्यागप्रतिमा, ९. प्रेष्यत्यागप्रतिमा, १०. उद्दिष्टभक्तत्यागप्रतिमा, ११. श्रमणभूतप्रतिमा।
इनमें प्रथम उपासकप्रतिमा का वर्णन यह है
वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है अर्थात् श्रुतधर्म और चारित्रधर्म में श्रद्धा रखता है। किन्तु वह अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादि-विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास आदि का सम्यक् प्रकार से धारक नहीं होता है। यह प्रथम उपासकप्रतिमा है।