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________________ छठी दशा] [४३ दूसरी उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है। उसके बहुत से शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादि-विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास आदि सम्यक् प्रकार से धारण किये हुए होते हैं। किन्तु वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत का सम्यक् प्रतिपालक नहीं होता है। यह दूसरी उपासकप्रतिमा है। तीसरी उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है। उसके बहुत से शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादि विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास आदि सम्यक् प्रकार से धारण किये हुए होते हैं। वह सामायिक और देशावकाशिक शिक्षाव्रत का भी सम्यक् परिपालक होता है। किन्तु चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णमासी तिथियों में परिपूर्ण पौषधोपवास का सम्यक् परिपालक नहीं होता। यह तीसरी उपासकप्रतिमा है। चौथी उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है, उसके बहुत से शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादि-विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास आदि सम्यक् धारण किए हुए होते हैं। वह सामायिक और देशावकाशिक शिक्षाव्रतों को भी सम्यक् प्रकार से पालन करता है। वह चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णमासी तिथियों में परिपूर्ण पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है। किन्तु एकरात्रिक कायोत्सर्गप्रतिमा का सम्यक् परिपालन नहीं करता है। यह चौथी उपासकप्रतिमा है। पांचवीं उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है, उसके बहुत से शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपातादि-विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास आदि सम्यक् प्रकार से धारण किये हुए होते हैं । वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत का सम्यक् प्रकार से परिपालन करता है। वह चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णमासी तिथियों में परिपूर्ण पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है। वह एकरात्रिक कायोत्सर्गप्रतिमा का सम्यक् परिपालन करता है। किन्तु अस्नान, दिवस भोजन, मुकुलीकरण, पूर्ण ब्रह्मचर्य का सम्यक् परिपालन नहीं करता है। वह इस प्रकार के आचरण से विचरता हुआ जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट पांच मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। यह पाँचवीं उपासकप्रतिमा है। __ छठी उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है यावत् वह एक रात्रिक कायोत्सर्गप्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन करता है। वह स्नान नहीं करता, दिन में भोजन करता है, धोती की लांग नहीं लगाता और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। किन्तु वह सचित्त आहार का परित्यागी नहीं होता है। इस प्रकार का आचरण करते हुए विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट छह मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। यह छठी उपासकप्रतिमा है। सातवीं उपासकप्रतिमा-वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है यावत् वह पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। वह सचित्ताहार का परित्यागी होता है। किन्तु वह आरम्भ करने का परित्यागी नहीं होता है। इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट सात मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। यह सातवीं उपासकप्रतिमा है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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