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________________ ५२ ] [ पुष्पिका इतना अंतर है कि इसका यान-विमान एक हजार योजन विस्तीर्ण और साढे बासठ योजन ऊँचा था। माहेन्द्रध्वज की ऊँचाई पच्चीस योजन की थी। इसके अतिरिक्त शेष सभी वर्णन सूर्याभ विमान के समान समझना चाहिये, यावत् जिस प्रकार से सूर्याभदेव भगवान् के पास आया, नाट्यविधि प्रदर्शित की और वापिस लौट गया, वही सब चन्द्रदेव के विषय में भी जान लेना चाहिये। 'भगवन्!' इस प्रकार से आमंत्रित कर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वंदननमस्कार किया, वंदन-नमस्कार करके निवेदन किया - भंते! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य दैविक प्रभाव कहाँ चले गये? कहाँ प्रविष्ट हो गये – समा गये? भगवान् ने उत्तर दिया – गौतम! चन्द्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य ऋद्धि आदि उसके शरीर में चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई - अन्तर्लीन हो गई। गौतम – भदन्त! किस कारण से आप ऐसा कह सकते हैं कि वह शरीर में चली गई, शरीर में अन्तर्लीन हो गई। ____ भगवान् – गौतम! जैसे कोई एक भीतर-बाहर गोबर आदि से लिपी-पुती, बाहर चारों ओर एक परकोटे से घिरी हुई, गुप्त द्वारों वाली और उनमें भी सघन किवाड़ लगे हुये हैं, अतएव निर्वातवायु का प्रवेश भी होना जिसमें अशक्य है, ऐसी गहरी विशाल कूटाकार-पर्वत-शिखर के आकार वाली शाला हो और उस कूटाकार शाला के समीप एक बड़ा जनसमूह बैठा हो। वह आकाश में अपनी ओर आते हुए एक बहुत बड़े मेघपटल को अथवा जलवर्षक बादल को अपना प्रचंड आंधी को देखे तो जैसे वह जनसमूह उस कूटाकार शाला में समा जाता है, उसी प्रकार आयुष्मान् गौतम! ज्योतिष्कराज चन्द्र की वह दिव्य देव-ऋद्धि आदि उसी के शरीर में प्रविष्ट हो गई - अन्तर्लीन हो गई, ऐसा मैंने कहा है। गौतम - भगवान् ! उस देव को इस प्रकार की वह दिव्य देव-ऋद्धि यावत् दिव्य देवानुभाव कैसे मिला है? उसने उसे कैसे प्राप्त किया है? किस तरह से अधिगत किया है? पूर्वभव में वह कौन था? उसका क्या नाम और गोत्र था ? किस ग्राम, नगर, निगम (व्यापारप्रधान नगर) राजधानी, खेट (खेड़े) कर्वट (कम ऊँचे प्राकार से वेष्टित ग्राम), मडंव (जिसके आस-पास चारों ओर एक योजन तक दूसरा कोई गाँव न हो), पत्तन (समुद्र का समीपवर्ती ग्राम - नगर), द्रोणमुख (जल और स्थल मार्गों से जुड़ा हुआ नगर), आकर (खानों वाला स्थान - नगर), आश्रम (ऋषियों का आवास स्थान), संबाह (यात्रियों, पथिकों के विश्राम योग्य ग्राम अथवा नगर) अथवा सन्निवेश (साधारण जनों की बस्ती) का निवासी था? उसने ऐसा क्या दान दिया ? ऐसा क्या भोग किया ? ऐसा क्या कार्य किया ? ऐसा कौनसा आचरण किया ? और कौन से तथारूप श्रमण अथवा माहण से ऐसा कौनसा एक भी धार्मिक आर्य सुवचन सुना और अवधारित किया है कि जिससे उस देव ने वह दिव्य देव-ऋद्धि यावत् दैविक प्रभाव उपार्जित किया है, प्राप्त किया है, अधिगत किया है?
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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