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वर्ग ३ : प्रथम अध्ययन ]
तेणं कालेणं तेणं समएणं चन्दे जोइसिन्दे जोइसराया चन्दवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए चन्दंसि सीहासांसि चउहिं (जाव) सामाणीयसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणियाहिं, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अने य बहूहिं विमाणवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे महयाहयनट्टगीयवाइयतन्तीतलतालतुडियघणमुङ्गङ्गपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुञ्जमाणे इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दी दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे पासए, पासित्ता समणं भगवं महावीरं, जहा सूरियाभे, आभिओगं देवं सद्दावेत्ता (जाव ) सुरिन्दाभिगमणजोग्गं करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणन्ति । सूसरा घण्टा ( जाव) विउव्वणा । नवरं जाणविमाणं जोयणसहस्सवित्थिण्णं अद्धतेवट्ठिजोयणसमूसियं, महिन्दज्झओ पणुवीसं जोयणमूसिओ, सेसं जहा सूरियाभस्स, ( जाव आगओ । नट्टविही। तहेव पडिगओ ।
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'भंते' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं पुच्छा । कूडागारसाला, सरीरं अणुपविट्ठा। पुव्वभवो । २. आयुष्मन् जम्बू ! वह इस प्रकार है उस काल और समय में राजगृह नाम का नगर था । वहाँ गुणशिलक नामक चैत्य था । वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था ।
उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ समवसृत हुए दर्शनार्थ परिषद निकली।
पधारे ।
उस काल और उस समय में ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर बैठकर चार हजार सामानिक देवों यावत् सपरिवार चार अममहिषियों, तीन परिषदाओं (आभ्यन्तर, मध्य, बाह्य परिषदाओं ), सात प्रकार की सेनाओं, सात उनके सेनापतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा अन्य दूसरे भी बहुत से उस विमानवासी देव - देवियों सहित निरंतर महान् गंभीर ध्वनिपूर्वक निपुण पुरुषों द्वारा वादित बजाये जा रहे तंत्री - वीणा, हस्तताल, कांस्यताल, त्रुटित, घन मृदंग आदि वाद्यों एवं नाट्यों के साथ दिव्य भोगोपभोगों को भोगता हुआ विचर रहा था । तब उसने अपने विपुल अवधि ज्ञान से अवलोकन करते हुये इस केवलकल्प (सम्पूर्ण) जम्बूद्वीप को देखा और तभी श्रमण भगवान् महावीर को भी देखा। तब भगवान् के दर्शनार्थ जाने का विचार करके सूर्याभदेव' के समान अपने आभियोगिक देवों को बुलाया यावत् उन्हें देव - देवेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य करने की आज्ञा दी यावत् सुरेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य करके इस आज्ञा को वापस लौटाने को कहा । आभियोगिक देवों ने भी सुरेन्द्रों के अभिगमन योग्य सब कार्य करके उसे आज्ञा वापिस लौटाई |
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फिर अपने पदाति सेनानायक को आज्ञा दी सुस्वरा घंटा को बजाकर सब देव-देवियों को भगवान् के दर्शनार्थ चलने के लिये सूचित करो। उस सेनानायक ने भी वैसा ही किया । यावत् सूर्याभदेव के समान नाट्यविधि आदि प्रदर्शित करने की विकुर्वणा की । लेकिन सूर्याभदेव के वर्णन से
१. इस संक्षिप्त कथन का सूचक राजप्रश्नीय सूत्रगत गद्यांश के अनुसार विस्तृत पाठ इस प्रकार है