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________________ वर्ग ३ : प्रथम अध्ययन ] [ ५३ श्रावस्ती नगरी का अंगति गाथापति ३. 'गोयमा' इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमन्तेत्ता एवं वयासी - एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नयरी होत्था। कोट्ठए चेइए। तत्थ णं सावत्थीए अङ्गई नाम गाहावई होत्था अड्ढे जाव (दित्ते वित्ते वित्थिण्णविउलभवण-सयणासण-जाणवाहणे बहुधणबहुजायरूवरयइ आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासीदासगोमहिसवेलगप्पभूए बहुजणस्स) अपरिभूए। तए णं से अङ्गई गाहावई सावत्थीए नयरीए बहूणं नगर-निगम सेट्ठि-सेणावइ सत्थवाह-दूय-संधिवालाणं बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य मन्तेसु य कुडुम्बेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिजे सयस्स वि य णं कुडुम्बस्स मेढी पमाणं आहारे आलम्बणं, चक्खू, मेढीभूए जाव सव्वकजवड्ढावए यावि होत्था। जहा आणन्दो। ३. गौतम! इस प्रकार से श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम को आमंत्रित – संबोधित कर कहा गौतम! उस काल और उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। वहाँ कोष्ठक नामक चैत्य था। उस श्रावस्ती नगरी में अंगति (अंगजित) नामक एक गाथापति – सद्गृहस्थ निवास करता था, जो धनाढ्य संस्कारी, तेजस्वी, प्रभावशाली, सम्पन्न, विशाल और विपुल भवन शयन - शैया, बिछौना, आसन आदि, यान-रथ आदि का, वाहन - बैल, घोड़े आदि और प्रचुर सोने, चांदी, सिक्का आदि का स्वामी एवं अर्थोपार्जन के उपायों में निरत था। भोजन करने के बाद भी उसके यहाँ पुष्कल खाद्य पदार्थ बचते थे। उसके घर में बहुत से दास, दासी, गाय, भैंस, बैल, भेड़ें आदि थीं। लोगों द्वारा अपरिभूत था – प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण जिसका अपमान, तिरस्कार, अनादर किया जाना संभव नहीं था। ___ वह अंगजित गाथापति (आनन्द श्रावकवत्) श्रावस्ती नगरी के बहुत से नगर निवासी व्यापारी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत, संधिपालक - सीमारक्षक आदि के अनेक कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, निर्णयों में, सामाजिक व्यवहारों में पूछने योग्य एवं विचार – परामर्श करने योग्य था एवं अपने कुटुम्ब परिवार का मेढि-केन्द्र, प्रमाण - व्यवस्थापक, आधार, आलंबन, चक्षु – मार्गदर्शक, मेढिभूतं यावत् (प्रमाणभूत, आधारभूत, आलंबनभूत, चक्षुभूत) तथा सब कार्यों में अग्रसर था। अर्हत् पार्श्व का पदार्पण ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे णं अरहा पुरिसादाणीए आइगरे, जहा महावीरो, नवुस्सेहे सोलसेहिं समणसाहस्सीहिं अट्ठतीसाए अज्जियासहस्सेहिं (जाव) कोट्ठए समोसढे। परिसा निग्गया। तए णं से अङ्गई गाहावई इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हढे जहा कत्तिओ सेट्ठी तहा
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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