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________________ वर्ग २ : प्रथम अध्ययन ] [ ४५ उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। (उसके उत्तर पूर्व में) पूर्णभद्र नामक चैत्य था। कूणिक वहाँ का राजा था। उसकी पदमावती नामक पटरानी थी। उस चम्पा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कूणिक राजा की विमाता काली नामक रानी थी, जो अतीव सुकुमार एवं स्त्री-उचित यावत् गुणों से सम्पन्न थीं। उस काली देवी का पुत्र काल नामक राजकुमार था। उस काल कुमार की पद्मावती नामक पत्नी थी, जो सुकोमल थी यावत् मानवीय भोगों को भोगती हुई समय व्यतीत कर रही थी। पद्मावती का स्वप्न २. तए णं सा पउमावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अन्भिन्तरओ सचित्तकम्मे (जाव) सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। एवं जम्मणं, जहा महाबलस्स', (जाव) नामधेजं - 'जम्हा णं अम्हं इमे दारए कालस्स कुमारस्स पुत्ते पउमावईए देवीए अत्तए, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेनं पउमे पउमे।' सेसं जहा महाबलस्स। अट्ठो दाओ। (जाव) उप्पिं पासायवरगए विहरइ। सामी समोसरिए। परिसा निग्गए। कूणिए निग्गए। पउमे वि जहा महाबले, निग्गए। तहेव अम्मापिइ-आपुच्छणा, (जाव) पव्वइए अणगारे जाए (जाव) गुत्तबम्भयारी। २. किसी एक रात्रि में भीतरी भाग में चित्र-विचित्र चित्रामों से चित्रित वास गृह में शैया पर शयन करती हुई स्वप्न में सिंह को देखकर वह पद्मावती देवी जागृत हुई। फिर पुत्र का जन्म हुआ, महाबल की तरह उसका जन्मोत्सव मनाया गया, यावत् नामकरण किया – 'क्योंकि हमारा यह बालक काल कुमार का पुत्र और पद्मावती देवी का आत्मज है, अतएव हमारे इस बालक का नाम पद्म हो।' शेष समस्त वर्णन महाबल के समान समझना चाहिये, अर्थात् राजसी ठाठ से उसका पालनपोषण हुआ। यथासमय उसने बहत्तर कलाएँ सीखीं। तरुणावस्था आने पर आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। आठ-आठ वस्तुएँ दाय (दहेज) में दी गईं यावत् पद्म कुमार ऊपरी श्रेष्ठ प्रासाद में रहकर भोग-भोगते, विचरने लगा। भगवान् महावीर स्वामी समवसृत हुए। परिषद् धर्म-देशना श्रवण करने निकली। कूणिक भी वंदनार्थ निकला। महाबल के समान पद्म भी दर्शन-वंदना करने के लिये निकला। महाबल के ही समान माता-पिता से अनुमति प्राप्त करके प्रवजित हुआ, यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया। पद्म अनगार की साधना ३. तए णं से पउमे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाई अहिजिइ, अहिजित्ता बहूहिं चउत्थछट्टट्ठमं (जाव) विहरइ। तए णं से पउमे अणगारे तेणं ओरालेणं, जहा मेहो, तहेव धम्मजागरिया, चिन्ता। एवं जहेव मेहो तहेव समणं भगवं आपुच्छित्ता विउले (जाव) पाओवगए समाणे तहारूवाणं थेराणं १. महाबल के जन्मादि का वर्णन परिशिष्ट में देखिए।
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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