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________________ ४६ ] [ कल्पावतंसिकासूत्र अन्तिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाई बहुपडिपुण्णाई पञ्च वासाइं सामण्णपरियाए । मासियाए संलेहणा सट्टिभत्ता | आणुपुव्वी कालगए। थेरा ओतिण्णा । भगवं गोयमे पुच्छइ, सामी कहेइ (जाव) सट्टिं भत्ताइं अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कंते अड्ढं चन्दिम० सोहम्मे कप्पे देवत्ता उववन्ने । दो सागराई । 'से णं भंते, पउमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ।' पुच्छा । 'गोयमा, महाविदेह वासे, जहा दढपइन्नो', (जाव) अन्तं काहि ।' निक्खेवो तं एवं खल जम्बू, समणेणं (जाव) संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते त्ति बेमि । ॥ पढमं अज्झयणं । २ ॥१॥ ३. तत्पश्चात् पद्म अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् चतुर्थभक्त, षष्टभक्त, अष्टभक्त, इत्यादि विविध प्रकार की तप साधना से आत्मा को भावित करते हुये विचरने लगा । इसके बाद वह पद्म अनगार मेघकुमार के समान उस प्रभावक विपुल - दीर्घकालीन, सश्रीकशोभासम्पन्न, गुरु द्वारा प्रदत्त अथवा प्रयत्नसाध्य, कल्याणकारी, शिव - मुक्तिप्रापक, धन्य, प्रशंसनीय, मांगलिक, उदग्र- उत्कट, उदार, उत्तम, महाप्रभावशाली तप आराधना से शुष्क, रूक्ष अस्थिमात्रावशेष शरीर वाला एवं कृश हो गया । तत्पश्चात् किसी समय मध्य रात्रि में धर्म- जागरण करते हुये पद्म अनगार को चिन्तन उत्पन्न हुआ। मेघ कुमार के समान श्रमण भगवान् से पूछकर विपुल पर्वत पर जा कर यावत् पादोपगमन संथारा स्वीकार करके तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अंगों का श्रवण कर परिपूर्ण पाँच वर्ष की श्रमण पर्याय का पालन करके मासिक संलेखना को अंगीकार कर और अनशन द्वारा साठ भक्तों का त्याग करके अर्थात् एक मास की संलेखना करके, अनुक्रम से कालगत जानकर स्थविर भगवान् के समीप आए । भगवान् गौतम ने पद्ममुनि के भविष्य के विषय में प्रश्न किया। स्वामी ने उत्तर दिया कि यावत् अनशन द्वारा साठ भोजनों का छेदन कर, आलोचना - प्रतिक्रमण कर सुदूर चन्द्र आदि ज्योतिष्क विमानों के ऊपर सौधर्मकल्प में देव रूप से उत्पन्न हुआ है । वहाँ दो सागरोपम की उसकी आयु है । गौतम स्वामी ने पुनः प्रश्न किया भदन्त ! वह पद्मदेव आयुक्षय ( भवक्षय एवं स्थितिक्षय) के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा । दृढप्रतिज्ञ के समान यावत् भगवान् ने उत्तर दिया (जन्म-मरण का ) अंत करेगा। १. दृढप्रतिज्ञ के विशेष परिचय के लिये परिशिष्ट देखिए ।
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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