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द्वितीय वर्ग : कल्पावतंसिका
प्रथम अध्ययन १. उक्खेवओ - जइ णं भंते! समणेणं भगवया (जाव) संपत्तेणं उवङ्गाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं अयमढे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स कप्पवडिंसियाणं समजेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता ?
एवं खलु, जम्बू ! समणेणं भगवया (जाव) संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता। तं जहा-पउमे १, महापउमे २, भद्दे ३, सुभद्दे ४, पउमभद्दे ५, पउमसेणे ६, पउमगुम्मे ७, नलिणिगुम्मे ८, आणन्दे ९, नन्दणे १०।
जई णं भंते ! समणेणं (जाव) संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया जाव के अढे पन्नत्ते ?
एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्द चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चम्पाए नयरीए सेणियस्स रनो भज्जा कूणियस्स रनो चुल्लमाउया काली नामं देवी होत्था सुहुमाला (०)। तीसे णं कालीए देवीए पुत्ते काले नामं कुमारे होत्था सुहुमाल०। तस्स णं कालरस्स कुमारस्स पउमावई नामं देवी होत्था, सोमाला (जाव) विहरइ।
१. जम्बूस्वामी का प्रश्न - भदन्त! यदि श्रमण यावत् निर्वाण-संप्राप्त भगवान् महावीर ने निरयावलिका नामक उपांग के प्रथम वर्ग का यह (पूर्वोक्त) आशय प्रतिपादित किया है तो हे भदन्त! दूसरे वर्ग कल्पावतंसिका का श्रमण यावत् निर्वाण-संप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है?
सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया - आयुष्मन् जम्बू! श्रमण यावत् मुक्तिसंप्राप्त भगवान् महावीर ने कल्पावतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं – १. पद्म, २. महापद्म, ३. भद्र, ४. सुभद्र, ५. पद्मभद्र, ६. पद्मसेन, ७. पद्मगुल्म, ८. नलिनगुल्म, ९. आनन्द और १०. नन्दन।
जम्बू - भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाण-संप्राप्त भगवान् ने कल्पावतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं तो भदन्त! श्रमाण भगवान् ने कल्पावतंसिका के प्रथम अध्ययन का क्या आशय प्रतिपादित किया है ?
सुधर्मा – आयुष्मन् जम्बू! वह इस प्रकार है -