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________________ ४० ] [ निरयावलिकासूत्र अपनी जय-विजय के लिये अर्चना की। इसके बाद कूणिक राजा ने तेंतीस हजार हाथियों यावत् तीस कोटि पैदल सैनिकों से गरुड़ व्यूह की रचना की। रचना करके गरुड़ व्यूह द्वारा रथ-मूसल संग्राम प्रारम्भ किया। इधर चेटक राजा ने सत्तावन हजार हाथियों यावत् सत्तावन कोटि पदातियों द्वारा शकट व्यूह की रचना की और रचना करके शकट व्यूह द्वारा रथ मूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ। __ तब दोनों राजाओं की सेनाएँ युद्ध के लिये तत्पर हो यावत् आयुधों और प्रहरणों को लेकर हाथों में ढालों को बांधकर, तलवारें म्यान से बाहर निकाल कर, कंधों पर लटके तूणीरों से, प्रत्यंचायुक्त धनुषों से छोड़े हुये बाणों से, फटकारते हुये बायें हाथों से, जोर-जोर से बजती हुई जंघाओं में बंधी हुई घंटिकाओं से, बजती हुई तुरहियों से एवं प्रचण्ड हुंकारों के महान् कोलाहल से समुद्रगर्जना जैसी करते हुये सर्वऋद्धि यावत् वाद्यघोषों से, परस्पर अश्वारोही अश्वारोहियों से, गजारूढ़ गजारूढ़ों से, रथी रथारोहियों से और पदाति पदातियों से भिड़ गये।' ___ दोनों राजाओं की सेनायें अपने-अपने स्वामी के शासनानुराग से आपूरित थीं। अतएव महान् जनसंहार, जनवध, जनमर्दन, जनभय और नाचते हुये रुंड-मुंडों से भयंकर रुधिर का कीचड़ करती हुई एक दूसरे से युद्ध में जूझने लगीं। - तदनन्तर काल कुमार तीन हजार हाथियों यावत् तीन मनुष्य कोटियों से गरुड़व्यूह के ग्यारहवें भाग में कूणिक राजा के साथ रथ मूसल संग्राम करता हुआ हत और मथित हो गया, इत्यादि जैसा भगवान् ने काली देवी से कहा था, तदनुसार यावत् मृत्यु को प्राप्त हो गया। (श्री भगवान ने कहा) - अतएव गौतम! इस प्रकार के आरम्भों से, इस प्रकार के कृत अशुभ कार्यों के कारण वह काल कुमार मरण के अवसर पर मरण करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है। उपसंहार ३४. 'काले णं भंते! कुमारे चउत्थीए पुढवीए ......... अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववजिहिइ ?' 'गोयमा, महाविदेहे वासे जाइं कुलाई भवंति अड्ढाई जहा दढपइन्नो (जाव) सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ (जाव) अंतं काहिइ।' _ 'तं एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते।' ॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥१॥
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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