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________________ वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ] [३९ ३२. अठारहों गण-राजाओं के आ जाने के पश्चात् चेटक राजा कूणिक राजा की तरह तीन हजार हाथियों आदि के साथ वैशाली नगरी के बीचोंबीच होकर निकला । निकलकर जहाँ वे नौ मल्ली, नौ लिच्छवी काशी- कोशल के अठारह गणराजा थे, वहाँ आया । तदनन्तर चेटक राजा सत्तावन हजार हाथियों, सत्तावन हजार घोड़ों, सत्तावन हजार रथों और सत्तावन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर सर्व ऋद्धि यावत् वाद्यघोष पूर्वक सुखद वास, प्रातः कलेवा और निकट-निकट विश्राम करते हुये विदेह जनपद के बीचोंबीच से चलते जहाँ सीमान्त - प्रदेश था, वहाँ आया । आकर स्कन्धावार का निवेश किया पड़ाव डाल दिया तथा कूणिक राजा की प्रतीक्षा करते हुये युद्ध को तत्पर हो ठहर गया । इसके बाद कूणिक राजा समस्त ऋद्धि-वैभव यावत् कोलाहल के साथ जहाँ सीमान्त प्रदेश था, वहाँ आया। आकर चेटक राजा से एक योजन की दूरी पर उसने भी स्कन्धावार निवेश किया । युद्धार्थ व्यूह-रचना ३३. तए णं ते दोन्नि वि रायाणो रणभूमिं सज्जावेंति, सज्जावित्ता रणभूमिं जयन्ति । तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दन्तिसहस्सेहिं जाव मणुस्सकोडीहिं गरुलवूहं रएइ रइत्ता गरुलवूहेणं रहमुसलं संगामं उवायाए । तणं से चेडगे राया सत्तावन्नाए दन्तिसहस्सेहिं (जाव) सत्तावन्नाए मणुस्सकोडी हिं सगडवूहं रएइ रइत्ता सगडवूहेणं रहमुसलं संगामं उवायाए । तणं ते दोहवि राईणं अणीया संनद्ध (जाव) गहियाउहपहरणा मंगतिएहिं फलएहिं, निक्किट्ठाहिं असीहिं, अंसागएहिं तोणेहिं, सजीवेहिं धणूहिं, समुक्खित्तेहिं सरेहिं, समुल्लालियाहिं डावाहिं, ओसारियाहिं उरुघण्टाहिं, छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठसीहनायबोलकलकलरवेण समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा सव्विड्ढीए जाव रखेणं हयगया हयगएहिं, गयगया गयगएहिं, रहगया रहगएहिं, पायत्तिया पायत्तिएहिं अन्नमन्नेहिं सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था । तणं ते दोह वि रायाणं अणीया नियगसामीसासणाणुरत्ता महया जणक्खयं जणवहं जणप्पमद्दं जणसंवट्टकप्पं नच्चन्तकबन्धवारभीमं रुहिरकद्दमं करेमाणा अन्नमन्त्रेणं सद्धिं जुज्झन्ति । तणं सेकाले कुमारे तिहिं दन्तिसहस्सेहिं जाव मणूसकोडीहिं गरुलवूहेणं एक्कारसमेणं खंधेणं रहमुसलं संगामं संगामेमाणे हयमहिय० जहा भगवया कालीए देवीए परिकहियं ( जाव ) जीवियाओ ववरोविए । 'तं एवं खलु, गोयमा ! काले कुमारे एरिसएहिं आरम्भेहिं जाव एरिसएणं असुभकडम्मपब्भारेणं काले मासे कालं किच्चा चउत्थीए पङ्कप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरए नेरइयत्ताए उववन्ने ।' ३३. तदनन्तर दोनों राजाओं ने रण भूमि को सज्जित किया, सज्जित करके रणभूमि में अपनी
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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