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[ निरयावलिकासूत्र
किन्तु कूणिक ने सेचनक हाथी और अठारह लड़ों के हार को वापिस लेने के लिये तीन दूत भेजे । किन्तु मैंने इस कारण अर्थात् अपनी जीवित अवस्था में स्वयं श्रेणिक राजा ने उसे ये दोनों वस्तुएं प्रदान की हैं, फिर भी हार - हाथी चाहते हो तो उसे आधा राज्य दो, यह उत्तर देकर उन दूतों को वापिस लौटा दिया। तब कूणिक मेरी इस बात को न सुनकर और न स्वीकार कर चतुरंगिणी सेना के साथ युद्धसज्जित होकर यहाँ आ रहा है। तो क्या देवानुप्रियो ! सेचनक हाथी और अठारह लड़ों का हार वापिस कूणिक राजा को लौटा दें ? वेहल्ल कुमार को उसके हवाले कर दें अथवा युद्ध करें ?
तब उन काशी - कोशल देशों के नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी
अठारह गणराजाओं ने
चेटक राजा से इस प्रकार कहा
स्वामिन्! यह न तो उचित है
युक्त है, न अवसरोचित है और न. राजा के अनुरूप ही है कि सेचनक और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को लौटा दिया जाय और शरणागत वेहल्ल कुमार को भेज दिया जाए। इसलिये जब कूणिक राजा चतुरंगिणी सेना को लेकर युद्धसज्जित होकर यहाँ आ रहा है तब हम कूणिक राजा के साथ युद्ध करें ।
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इस पर चेटक राजा ने उन नौ लिच्छवी और नौ मल्ली काशी- कोशल के अठारह गणराजाओं यदि आप देवानुप्रिय कूणिक राजा से युद्ध करने के लिये तैयार हैं तो देवानुप्रियो ! अपनेअपने राज्यों में जाइये और स्नान आदि कर कालादि कुमारों के समान यावत् (युद्ध के लिये सुसज्जित होकर अपनी-अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ वैशाली में आइये । यह सुनकर अठारहों राजा अपनेअपने राज्यों में गये और युद्ध के लिये सुसज्जित होकर आये ।) आकर उन्होंने चेटक राजा को जयविजय शब्दों से बधाया ।
उसके बाद चेटक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर यह आज्ञा दी आभिषेक्य हस्तिरत्न को सजाओ आदि कूणिक राजा की तरह यावत् चेटक राजा हाथी पर आरूढ हुआ ।
चेटक राजा का युद्धक्षेत्र में आगमन
३२. तए णं से चेडएं राया तिहिं दन्तिसहस्सेहिं, जहा कूणिए (जाव) वेसालिं नयरिं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाओ तेणेव उवागच्छइ ।
तणं से चेडए राया सत्तावन्नाए दन्तिसहस्सेहिं, सत्तावन्नए आससहस्सेहिं, सत्तावन्नाए रहसहस्सेहिं सत्तावन्नाए मणुस्सकोडिहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव रवेण सुहेहिं वसहीहिं पायरासेहिं नाइविगिट्ठेहिं अन्तरेहिं वसमाणे वसमाणे विदेहं जणवयं मज्झमज्झेणं जेणेव देसप्पन्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खन्धावारनिवेसणं करेइ, करित्ता कूणियं रायं पडिवालेमाणे जुद्धसज्जे चिट्ठ |
तणं से कूणिए राया सव्विड्ढीए ( जाव ) रवेणं जेणेव देसप्पन्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेडयस्स रन्नो जोयणन्तरियं खन्धावारनिवेस करे |