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________________ वर्ग १: प्रथम अध्ययन ] [३७ यावत् अंजनगिरि के शिखर के समान विशाल उच्च गजपति पर वह नरपति आरूढ हुआ। तत्पश्चात् कूणिक राजा तीन हजार हाथियों (तीन हजार रथों, तीन हजार अश्वों, तीस कोटि पदातियों के साथ) यावत् वाद्यघोषपूर्वक चम्पा नगरी के मध्य भाग में से निकला, निकलकर जहाँ काल आदि दस कुमार ठहरे थे वहाँ पहुँचा और काल आदि दस कुमारों से मिला। - इसके बाद तेतीस हजार हाथियों, तेतीस हजार घोड़ों तेतीस हजार रथों और लेतीस कोटि मनुष्यों से घिर कर सर्व ऋद्धि यावत् कोलाहल पूर्वक सुविधाजनक पड़ाव डालता हुआ, सुखपूर्वक प्रातः कलेवा आदि करता हुआ, अति विकट अन्तरावास (पड़ाव) न कर किन्तु निकट-निकट विश्राम करते हुये अंग जनपद के मध्य भाग में से होते हुये जहाँ विदेह जनपद था, उसमें भी जहाँ वैशीली नगरी थी, उस ओर चलने के लिये उद्यत हुआ। चेटक का गण-राजाओं से परामर्श ३१. तए णं से चेडए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाओ सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी – “एवं खलु, देवाणुप्पिया! वेहल्ले कुमारे कूणियस्स रनो असंविदिएणं सेयणगं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय इहं हव्वमागएद्धा तए णं कूणिएणं सेणगस्स अट्ठारसवंकस्स य अट्ठाए तओ दूया पेसिय। ते य मए इमेणं कारणेणं पडिसेहिया। तए णं से कूणिए ममं एयमटुं अपडिसुणमाणे चाउरङ्गिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे जुद्धसज्जे इहं हव्वमागच्छइ। तं किं णं देवाणुप्पिया, सेयणगं अट्ठारसवंकं कूणियस्स रनो पच्चप्पिणामो ? वेहल्लं कुमारं पेसेमो ? उदाहु जुज्झित्था?' तए णं नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो चेडगं रायं एवं वयासी - 'न सामी ! जुत्तं वा पत्तं वा रायसरिसं वा, जं णं सेयणगं अट्ठासवंकं कूणियस्स रनो पच्चप्पिणिजइ, वेहल्ले य कुमारे सरणागए पेसिज्जइ। तं जइ णं कूणिए राया चाउरङ्गिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे जुद्धसजे इहं हव्वमागच्छइ, तए णं अम्हे कूणिएणं रन्ना सद्धिं जुज्झाओ।' तए णं से चेडए राया ते नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो एवं वयासी - जइ णं देवाणुप्पिया, तुब्भे कूणिएणं रन्ना सद्धिं जुज्झह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया, सएसु सएसु रज्जेसु, बहाया जहा कालाईया (जाव) जएणं विजएणं वद्धावेंति। तए णं से चेडए राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी – 'आभिसेक्कं जहा कूणिए' (जाव) दुरूढे। . ३१. राजा कूणिक का युद्ध के लिये प्रस्थान का समाचार जानकर चेटक राजा ने काशीकोशल देशों के नौ लिच्छवी और नौ मल्लकी इन अठारह गण-राजाओं को परामर्श करने हेतु आमंत्रित किया और उनके एकत्र होने पर कहा - देवानुप्रियो! बात यह है कि कूणिक राजा को विना जताये – कहे-सुने वेहल्ल कुमार सेचनक हाथी और अठारह लड़ों का हार लेकर यहाँ आ गया है।
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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