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________________ वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ] [३५ . तब वे कालादि दसों कुमार कूणिक राजा के इस विचार - कथन को सुनकर अपने-अपने राज्यों को लौटे। प्रत्येक ने स्नान किया, (तीन-तीन हजार हाथियों, रथों, घोड़ों) यावत् तीन कोटि मनुष्यों-पैदल सैनिकों को साथ लेकर समस्त ऋद्धि यावत् वाद्यघोष-निनादों के साथ अपने-अपने नगरों से निकले। निकलकर जहाँ अंग जनपद-प्रान्त था, जहाँ चम्पा नगरी थी, जहाँ कूणिक राजा था, वहाँ आये और दोनों हाथ जोड़कर यावत् बधाया-उसका अभिनन्दन किया। कूणिक : युद्ध-प्रयास से पूर्व ३०. तए णं से कूणिए राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ सदावित्ता एवं वयासी - 'ख्पिामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगयरहजोहचाउरङ्गिणिं सेणं संनाहेह, ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह,' जाव पच्चप्पिणन्ति। __तए णं से कूणिए राया जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, (जाव) उवागच्छित्ता मजणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता मुत्ताजालभिरामे विचित्तमणिरयणकोट्टिमतले रमणिजे ण्हाणमण्डवंसि नाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहनिसण्णे, सुहोदएहिं पुष्फोदएहिं गंधोदएहिं सुद्धोदएहि य पुणो पुणो कल्लाणगपवरमजणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहु विहे हिं कल्लाणगपवरमजणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियङ्गे अहयसुमहग्घदूसरायणसुसंवुए सरससुरभिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते सुइमालावण्णगविलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहारंतिसरयपालम्बपलम्बमाणकडिसुत्तसुक यसोहे पिणद्धगेविजे अॉलेज्जगललियङ्गललियकयाहरणे नाणामणिकडगतुडियथम्भियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुण्डलुज्जोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकतरइयवच्छे- पालम्बपलम्बमाणसुकयपडउत्तरि जे मुद्दियापिङ्ग लङ्गुलीए-नाणामणिक णगरयण-विसलमहरिह निउणोवियमिसिमिन्तविरइयसुसिलिट्ठसंठियपसत्थआविद्धवीरबलए, किं बहुणा, कप्परुक्खए चेव सुअलंकि यविभूसिए नरिंदे सकोरिंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं उभओ चउचामरवालवीइयने मङ्गलजयसद्दकयालोए अणेगगणनायग-दण्डनायग-राईसर-तलवर-माडम्बियकोडुम्बिय-मन्ति-महामन्ति-गणग-दोवारिय-अमच्चं-चेड-पीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठि-सेणावइसत्थवाह-दूय-संधिवालसद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगणदिप्पन्ततारागणाण मज्झे ससि व्व पियदंसणे नरवई मझंणघराओ पडिनिग्गच्छइ पडिनिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जाव नरवई दुरूढे। __ तए णं से कूणिए राया तिहिं दन्तिसहस्सेहिं जाव रवेणं चम्पं नयरि मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कालाईयादस कुमारा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कालाइएहिं दसहिं कुमारेहिं सद्धिं एगओ मेलायन्ति। तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दन्तिसहस्सेहिं तेत्तीसाए आससहस्सेहिं तेत्तीसाए रहसहस्सेहिं तेत्तीसाए मणुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए (जाव) रवेणं सुहेहि वसईहिं सुहेहिं पायरासेहिं
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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