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________________ ३४ ] [ निरयावलिकासूत्र २८. तत्पश्चात् कूणिक राजा ने दूत से इस समाचार को सुनकर और उस पर विचार कर क्रोधित हो काल आदि दस कुमारों को बुलाया और बुलाकर उनसे इस प्रकार कहा – 'देवानुप्रियो! बात यह है कि मुझे बिना बताये ही वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती, अठारह लड़ों का हार और अन्तःपुर-परिवार सहित गृहस्थी के उपकरणों को लेकर चम्पा से भाग निकला। निकलकर वैशाली में आर्य चेटक का आश्रय लेकर रह रहा है। मैंने सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार लाने के लिये दूत भेजा। चेटक राजा ने इस (पूर्वोक्त) कारण से हाथी, हार और वेहल्ल कुमार को भेजने से इन्कार कर दिया और मेरे तीसरे दूत को असत्कारित, अपमानित कर पिछले द्वार से निष्कासित कर दिया। इसलिये हे देवानुप्रियो! हमें चेटक राजा का निग्रह करना चाहिये, उसे दण्डित करना चाहिये।' - उन काल आदि दस कुमारों ने कूणिक राजा के इस विचार को विनयपूर्वक स्वीकार किया। काल आदि दस कुमारों की युद्धार्थ सज्जा २९. तए णं से कूणिए राया कालाईए दस कुमारे एवं वयासी - 'गच्छइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया, सएसु सएसु रज्जेसु, पत्तेयं ण्हाया (जाव) पायच्छित्ता हत्थिखंधवरगया, पत्तेयं पत्तेय तिहिं दंति सहस्सेहिं एवं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं मणुस्सकोडीहिं सद्धिं सुपरिवुडा सव्विड्ढीए (जाव) सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वभूसाए सव्वविभूईए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सव्वदिव्वतुछियसद्दसंनिनाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसमगपडुप्पवाइयरवेणं संखपणवपडहभेरिझल्लरिखरमुहिहुडुक्कमुरयमुइङ्गदुन्दुहिनिग्घोसनाइयरवेणं सएहितो सएहितो नयरेहितो पडिनिक्खमह, पडिनिक्खमित्ता ममं अन्तियं पाउब्भवह।' तए णं ते कालाईया दस कुमारा कूणियस्स रन्नो एयमढं सोच्चा सएसु सएसु रज्जेसु पत्तेयं पत्तेयं ण्हाया जाव तिहिं मणुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्ढीए जाव रवेणं सएहितो सएहितो नयरेहितो पडिनिक्खमन्ति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अङ्गण जणवए, जेणेव चम्पा नयरी, जेणेव कूणिए राया, तेणेव उवागया करयल० जाव वद्धावेन्ति। २९. तत्पश्चात् कूणिक राजा ने उन काल आदि दस कुमारों से इस प्रकार कहा - देवानुप्रियो! आप लोग अपने-अपने राज्य में जाओ, और प्रत्येक स्नान यावत् प्रायश्चित्त आदि करके श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ होकर प्रत्येक अलग-अलग तीन हजार हाथियों, तीन हजार रथों, तीन हजार घोड़ों और तीन कोटि मनुष्यों को साथ लेकर समस्त ऋद्धि-वैभव यावत् सब प्रकार के सैन्य, समुदाय एवं आदरपूर्वक सब प्रकार की वेशभूषा से सज कर, सर्व विभूति, सर्व सम्भ्रम-स्नेहपूर्ण उत्सुकता, सब प्रकार के सुगंधित पुष्प, वस्त्र, गंध, माला, अलंकार, सर्व दिव्य वाद्यसमूहों की ध्वनि-प्रतिध्वनि, महान् ऋद्धिविशिष्ट वैभव, महान् द्युति-ओज-आभा, महाबल-विशिष्ट सेना, विशिष्ट समुदाय, शंख, ढोल, पटह, भेरी, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज, मृदंग, दुन्दुभि के घोष की ध्वनि के साथ अपने-अपने नगरों से प्रस्थान करो और प्रस्थान करके मेरे पास आकर एकत्रित होओ।
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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