________________
वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ]
[३३
लेहं पणावेइ, तं चेव सबलखंधावारे णं इह हव्वमागच्छइ।'
तए णं से चेडए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते (जाव) साह? एवं वयासी – 'न अप्पिणामि णं कूणियस्स रन्नो सेयणगं अट्ठारसवंकं हारं, वेहल्लं च कुमारं नो पेसेमि, एस णं जुद्धसजे चिट्ठामि' तं दूयं असक्कारियं असंमाणियं अवदारेणं निच्छुहावेइ।
२७. तब कूणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक के इस उत्तर को सुनकर और उसे अधिगत करके क्रोधाभिभूत हो कर यावत् दांतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया। बुला कर उससे इस प्रकार कहा - देवानुप्रिय! तुम वैशाली नगरी जाओ और बायें पैर से पादपीठ को ठोकर मार कर चेटक राजा को भाले की नोंक से यह पत्र देना। पत्र देकर क्रोधित यावत् मिसमिसाते हुए भृकुटि तान कर ललाट में त्रिवली डाल कर चेटक राज से यह कहना - 'ओ अकाल मौत के अभिलाषी, निर्भागी, यावत् निर्लज चेटक राजा, कूणिक राजा यह आदेश देता है कि कूणिक राजा को सेचनक गंधहस्ती एवं अट्ठारह लड़ों का हार प्रत्यर्पित करो और वेहल्ल कुमार को भेजो अथवा युद्ध के लिये सज्जित-तैयार होओ। कूणिक राजा बल, वाहन और सैन्य के साथ युद्ध सज्जित हो कर शीघ्र ही आ रहे हैं।'
तब दूत ने पूर्वोक्त प्रकार से हाथ जोड़ कर कूणिक का आदेश स्वीकार किया। वह वैशाली नगरी पहुँचा। जहाँ चेटक राजा था वहाँ आया। आकर उसने दोनों हाथ जोड़ कर यावत् बधाई दे कर इस प्रकार कहा – 'स्वामिन् ! यह तो मेरी विनयप्रतिपत्ति-शिष्टाचार है। किन्तु कूणिक राजा की आज्ञा यह है कि बायें पैर से चेटक राजा की पादपीठ को ठोकर मारो, ठोकर मार कर क्रोधित होकर भाले की नोंक से यह पत्र दो, इत्यादि सेना सहित शीघ्र ही यहाँ आ रहे हैं।' .. तब चेटक राजा ने उस दूत से यह धमकी सुन कर और अवधारित कर क्रोधाभिभूत यावत् ललाट सिकोड़ कर इस प्रकार उत्तर दिया - 'कूणिक राजा को सेचनक गंधहस्ती और अट्ठारह लड़ों का हार नहीं लौटाऊंगा और न वेहल्ल कुमार को भेजूंगा। किन्तु युद्ध के लिये तैयार हूँ।' ऐसा कह कर उस दूत को असत्कार-असम्मान-अपमान कर पिछले द्वार से निकाल दिया। युद्ध की तैयारी
२८. तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमढें सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ सहावित्ता एवं वयासी – “एवं खलु, देवाणुप्पिया, वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिएण सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अन्तेउरं सभण्डं च गहाय चम्पाओ निक्खमई, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं (जाव) उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं मए सेयणगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहिया अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असंमाणिए अवदारेणं निच्छुहावेइ। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया, अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।'
तए णं कालाईया दस कुमार कूणियस्स रन्नो एयमढें विणएणं पडिसुणेति।