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________________ भूखे और प्यासे रखकर मारें। जब कौशल देवी राजा से मिलने को जाती तो उत्संग में भोजन छुपा कर ले जाती थी और राजा को दे देती। अजातशत्रु को ज्ञात होने पर उसने कर्मकरों से कहा – मेरी माता को उत्संग बांध कर मत जाने दो। तब महारानी जूड़े में भोजन छिपा कर ले जाने लगी। उसका भी निषेध हुआ। तब वह सोने की पादका में भोजन छपा कर ले जाने लगी. तब उसका निषेध किया गया तो महारानी गन्धोदक से स्नान कर शरीर पर मधु का लेप कर राजा के पास जाने लगी। राजा उसके शरीर को चाट कर कुछ दिनों तक जीवित रहा। अजातशत्रु ने अन्त में अपनी माता को धूमगृह में जाने का निषेध किया। राजा श्रेणिक अब श्रोतापत्ति के सुख के आधार पर जीने लगा तो अजातशत्रु ने नाई को बुलाकर कहा – मेरे पिता के पैरों को तुम पहले शस्त्र से छील दो, उस पर नमकयुक्त तेल का लेपन करो और फिर खैर के अंगारे से उसे सेको। नाई ने वैसा ही किया जिससे राजा का निधन हो गया। जैन परम्परा की दृष्टि से माता से पिता के प्रेम की बात को सुनकर कूणिक के मन में पिता की मृत्यु से पूर्व ही पश्चात्ताप हो गया था जब कूणिक ने देखा -पिता ने आत्महत्या कर ली है तो वह मूछित होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ समय के बाद जब उसे होश आया तो वह फूट-फूट कर रोने लगा – मैं कितना पुण्यहीन हूँ, मैंने अपने पूज्य पिता को बन्धनों में बांधा और मेरे निमित्त से ही पिता की मृत्यु हुई है। वह पिता के शोक से संतप्त होकर राजगृह को छोड़कर चम्पा नगरी पहुंचा और उसे मगध की राजधानी बनाया। तुलनात्मक अध्ययन बौद्धदृष्टि से जिस दिन बिम्बिसार की मृत्यु हुई, उस दिन अजातशत्रु के पुत्र हुआ। संवादप्रदाताओं ने लिखित रूप से संवाद प्रदान किया। पुत्र-प्रेम से राज हर्ष से नाच उठा। उसका रोम-राम प्रसन्न हो उठा। उसे ध्यान आया - जब मैं जन्मा था तब मेरे पिता को भी इसी तरह आह्लाद हआ होगा। उसने कर्मकारों से कहा- पिता को मुक्त कर दो। संवाददाताओं ने राजा के हाथ में बिम्बिसार की मृत्यु का पत्र थमा दिया। पिता की मृत्यु का संवाद पढ़ते ही वह आंसू बहाने लगा और दौड़कर माँ के पास पहुंचा। माँ से पूछा - माँ ! क्या मेरे पिता का भी मेरे प्रति प्रेम था ? माँ ने अंगुली चूसने की बात कही। पिता के प्रेम की बात को सुनकर वह अधिक शोकाकुल हो गया और मन ही मन दु:खी होने लगा। कूणिक का दोहद, अंगुली में व्रण कारागृह आदि प्रसंगों का वर्णन जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में प्राप्त है। परम्परा में भेद होने के कारण कुछ निमित्त पृथक् हैं। जैन परम्परा की घटना 'निरयावलिका' की है और बौद्ध परम्परा में यह घटना 'अट्ठकथाओं' में आई है। पंडित दलसुख मालवाणिया निरयावलिका की रचना वि. सं. के पूर्व की मानते हैं२२ और अट्ठकथाओं का रचनाकाल वि. की पांचवीं शती है ।२३ जैन परम्परा के साहित्य में भी कूणिक की क्रूरता का चित्रण है किन्तु बौद्ध परम्परा जैसा नहीं। बौद्ध - पं. दलसुख मालवणिया २२. आगमयुग का जैनदर्शन, सन्मतिज्ञानपीठ आगरा १९६६, पृ. २९ २३. आचार्य बुद्धघोष - महाबोधिकसभा, सारनाथ, वाराणसी, १९५६ [१९]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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