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________________ राजा बन गया हूँ, तथापि तुम चिंतित हो! मुझे अपनी चिंता का कारण बताओ। माँ ने कहा - तुझे धिक्कार है। तूने अपने पिता को कारागृह में बंद किया है। जबकि तेरे पिता का तुझ पर अपार स्नेह था। जब तू मेरे गर्भ में आया तो मुझे राजा श्रेणिक के उदर का मांस खाने का दोहद पैदा हुआ। दोहद पूर्ण न होने से मैं उदास रहने लगी। मेरी अंगपरिचारिकाओं से राजा श्रेणिक को वह बात ज्ञात हो गई तथा महाराज श्रेणिक ने अभय कुमार के सहयोग से मेरा दोहद पूर्ण किया। मुझे बहुत ही बुरा लगा, मैंने सोचा - जो गर्भ में जीव है वह गर्भ में ही पिता का मांस खाने की इच्छा करता है तो जन्म लेने के बाद पिता को कितना कष्ट देगा! यह कल्पना कर ही मैं सिहर उठी और मैंने गर्भ नष्ट करने का प्रयत्न किया। पर सफल न हो सकी। तेरे जन्म लेने पर मैंने पूरे (रोड़ी) पर तुझे फिकवा दिया। पर जब यह बात राजा श्रेणिक को ज्ञात हुई तो वे अत्यंत क्रुद्ध हुए, उन्होंने तुझे तुरंत मंगवाया। घूरे पर पड़े हुए तेरे असुरक्षित शरीर पर कुक्कुट ने चोंच मार दी जिससे तेरी अंगुली पक गई और उसमें से मवाद निकलने लगा। अपार कष्ट से तू चिल्लाता था। तब तेरी वेदना को शांत करने के लिये तेरे पिता अंगुली को मुँह में रख कर चूसते, जिससे तेरी वेदना कम होती और तू शांत हो जाता। ऐसे महान् उपकारी पिता को तूने यह कष्ट दिया है! . कूणिक के मन में पिता के प्रति प्रेम उद्बुद्ध हुआ। उसे अपनी भूल का परिज्ञान हुआ। वह हाथ में परशु ले कर पिता की हथकड़ी-बेड़ी तोड़ने के लिये चल पड़ा। राजा श्रेणिक ने दूर से देखा कि कूणिक हाथ में परशु लिये आ रहा है तो समझा कि अब मेरा जीवनकाल समाप्त होने वाला है। पुत्र के हाथों मृत्यु प्राप्त हो, इससे तो यही श्रेयस्कर है कि मैं स्वयं कालकट विष खा कर अपने प्राणों का अंत कर लें। बौद्ध साहित्य में अजातशत्रु का प्रसंग राजा श्रेणिक और अजातशत्रु (कूणिक) का यह प्रसंग बौद्ध साहित्य में भी मिलता है परन्तु दोनों में कुछ अन्तर है। बौद्ध परम्परा के अनुसार वैद्य ने राजा की बाहु का रक्त निकलवाकर महारानी के दोहद की पूर्ति की। महारानी को ज्योतिषी ने बताया कि यह पुत्र पिता को मारने वाला होगा अतः उस गर्भस्थ शिशु को किसी भी प्रकार से नष्ट करने का प्रयास करने लगी, वह मन ही मन खिन्न थी कि इस बालक के गर्भ में आते ही पति के मांस को खाने का दोहद हुआ है, इसलिये इस गर्भ को गिरा देना ही श्रेयस्कर है। महारानी ने गर्भपात के लिये अनेक प्रयास किये पर वह सफल न हो सकी। जन्म लेने पर नवजात शिशु को राजा के कर्मचारी राजा के आदेश से महारानी के पास से हटा देते हैं, जिससे महारानी उसे मार न दे। कुछ समय के बाद महारानी को सौंपते हैं। पुत्रप्रेम से महारानी उसमें अनुरक्त हो जाती है। एक बार अजातशत्रु की अंगुली में फौड़ा हो गया। बालक वेदना से कराहने लगा जिससे कर्मकर उसे राजसभा में ले जाते हैं। राजा अपने प्यारे पुत्र की अंगुली मुख में रख लेता है, फोड़ा फूट जाता है। पुत्र प्रेम में पागल बना हुआ राजा उस रक्त और मवाद को निगल जाता है। अजातशत्र जीवन के उषाकाल से ही महत्त्वाकांक्षी था। देवदत्त उसकी महत्त्वाकांक्षा को उभारता था। अतएव अपने पूज्य पिता को वह धूमगृह (लोहकर्म करने का ग्रह) में डलवा देता है। धूमगृह में कौशल देवी के अतिरिक्त कोई भी नहीं जा सकता था। देवदत्त ने अजातशत्रु को कहा - अपने पिता को शस्त्र से न मारें, [१८]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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