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हुई थी।८ थेरीगाथा के अनुसार उज्जयनी की पद्मावती गणिका भी श्रेणिक की पत्नी थी।९ अमितायुान सूत्र के अभिमतानुसार वैदेही वासवी बिम्बिसार की रानी थी और शीलवा, जयसेना भी उसकी रानियां थीं।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि जैन साहित्य में श्रेणिक की रानियों के जो नाम उपलब्ध हैं, वे नाम बौद्ध साहित्य में प्राप्त नहीं हैं और जो नाम बौद्ध साहित्य में हैं वे जैन साहित्य में नहीं मिलते हैं। संभव है परम्परा की दृष्टि से यह भेद हुआ हो। जैन साहित्य में श्रेणिक के पुत्र
जैन साहित्य में सम्राट श्रेणिक के छत्तीस पुत्रों का उल्लेख मिलता है। उन छत्तीस पुत्रों में राज्य का उत्तराधिकारी राजकुमार कूणिक था। इनके नामों की सूची इस प्रकार है – (१) जाली (२) मयाली (३) उवयाली (४) पुरिमसेण (५) वारिसेण (६) दीहदन्त (७) लट्ठदन्त (८) वेहल्ल (९) वेहायस (१०) अभयकुमार (११) दीहसेण (१२) महासेण (१३) लट्ठदन्त (१४) गूढदन्त (१५) शुद्धदन्त (१६) हल्ल (१७) दुम (१८) दुमसेण (१९) महादुमसेण (२०) सीह (२१) सीहसेण (२२) महासीहसेण (२३) पुण्णसेण (२४) काल कुमार (२५) सुकाल कुमार (२६) महाकाल कुमार (२७) कण्ह कुमार (२८) सुकण्ह कुमार (२९) महाकण्ह कुमार (३०) वीरकण्ह कुमार (३१) रामकण्ह कुमार (३२) सेणकण्ह कुमार (३३) महासेणकण्ह कुमार (३४) मेघ कुमार (३५) नन्दीसेन और (३६) कूणिक।
इन राजकुमारों में से २३ राजकुमारों ने आहती दीक्षा ग्रहण कर उत्कृष्ट संयम की आराधना की और वे अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। मेघ कुमार भी श्रमण धर्म को स्वीकार कर अंत में अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए। नन्दीसेन भी श्रमण बन कर साधना के पथ पर आगे बढ़े। इस प्रकार २५ राजकुमारों के दीक्षा लेने का वर्णन है। ग्यारह राजकुमारों ने साधना पथ को स्वीकार नहीं किया और वे मृत्यु को प्राप्त कर नरक में उत्पन्न हुए।
निरयावलिया के प्रथम वर्ग में श्रेणिक के दस पुत्रों का नरक में जाने का वर्णन है। श्रेणिक की महारानी चेलना से कूणिक का जन्म हुआ। कूणिक के संबंध में हम औपपातिकसूत्र की प्रस्तावना में बहुत विस्तार से लिख चुके हैं, अतः जिज्ञासु पाठक विशेष परिचय के लिये वहां देखें । कूणिक के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग प्रस्तुत आगम में है। कूणिक अपने लघु भ्राता काल कुमार, सुकाल कुमार आदि के सहयोग से अपने पिता श्रेणिक को बन्दी बना कर कारागृह में रखता है। क्योंकि उसके अन्तर्मानस में यह विचार घूम रहे थे कि राजा श्रेणिक के रहते हुए मैं राजसिंहासन पर आरुढ़ नहीं हो सकता, अतः उसने यह उपक्रम किया था। कूणिक अत्यन्त आह्लादित होता हुआ अपनी माँ को नमस्कार करने पहुंचा, पर माँ अत्यन्त चिंतित थी। कूणिक ने कहा - माँ ! तुम चिंता-सागर में क्यों डुबकी लगा रही हो ? मैं तुम्हारा पुत्र हूँ, १८. थेरीगाथा-अट्ठकथा, १३९-१४३ १९. थेरीगाथा, ३१-३२ २०. Dictionary of Pali Proper Names, Vol. III, p. 286 २१. औपपातिकसूत्र, प्रस्तावना, पृष्ठ २०-२४ (आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर)
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