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________________ बहुत बड़ी सेना थी और वे सेनिय गौत्र के थे इसलिये उनका नाम श्रेणिक पड़ा। जैन साहित्य में राजा श्रेणिक की महारानियाँ जैन साहित्य के अनुसार राजा श्रेणिक की पच्चीस रानियाँ थी, उनके नाम इस प्रकार हैं – अन्तकृद्दशांगर में (१) नन्दा (२) नन्दमती (३) नन्दोत्तरा (४) नन्दिसेणिया (५) मरुया (६) सुमरिया (७) महामरुता (८) मरुदेवा (९) भद्रा (१०) सुभद्रा (११) सुजाता (१२) सुमना (१३) भूतदत्ता (१४) काली (१५) सुकाली (१६) महाकालि (१७) कृष्णा (१८) सुकृष्णा (१९) महाकृष्णा (२०) वीरकृष्णा (२१) रामकृष्णा (२२) पितुसेनकृष्णा और (२३) महासेनकृष्णा। इन तेईस रानियों ने सम्राट् श्रेणिक के निधन के पश्चात् भगवान् महावीर के नेतृत्व में आर्हती दीक्षा गृहण की थी। ज्ञाताधर्मकथा में श्रेणिक की एक रानी धारिणी का भी उल्लेख है। दशाश्रुतस्कन्ध में महारानी चेलना का वर्णन है जिसका रूप अद्भुत और अनूठा था। जिसके दिव्य रूप को निहार कर भगवान् महावीर की श्रमणियाँ ठगी सी रह गईं और वे निदान करने को तत्पर हो गईं। निशीथचूर्णि१५ में श्रेणिक की एक रानी का नाम अपतगन्धा प्राप्त होता है और यह नाम बहुत ही कम प्रसिद्ध है। बौद्ध साहित्य में महारानियाँ बौद्ध साहित्य विनयपिटक में राजा श्रेणिक की पांच सौ रानियों का उल्लेख है। कहा जाता है कि बिम्बिसार श्रेणिक को एक बार भंगदर का भयंकर रोग हुआ, राजा उस रोग से अत्यधिक व्यथित हो गया। जीवक कुमारभृत्य ने राजा को ऐसा लेप लगाया जिससे राजा रोग से मुक्त हो गया। राजा की प्रसन्नता का कोई पार नहीं रहा। राजा ने अपनी पांच सौ रानियों को बढ़िया वस्त्राभूषणों से अलंकृत करवाया और पांच सौ ही रानियों के वस्त्राभूषण उतरवाकर जीवक को उपहार स्वरूप दे दिये। विज्ञों का यह भी मंतव्य है कि वे पांच सौ महिलायें राजा की ही रानियां हों, यह निश्चित नहीं कहा जा सकता। जातक के अनुसार राजा प्रसेनजित की भगिनी कौशला देवी का पाणिग्रहण राजा बिम्बिसार के साथ हुआ था और प्रसेनजित ने एक लाख कार्षापण की आय वाला एक गाँव दहेज के रूप में दिया था। थेरीगाथा अट्ठकथा के अनुसार राजा श्रेणिक का विवाह मद्रदेश की राजकन्या खेमा के साथ हुआ था। राजकुमारी को अपने रूप पर अत्यंत घमण्ड था। यह तथागत बुद्ध से प्रतिबुद्ध होकर बुद्धशासन से प्रव्रजित. ११. Dictionary of Pali Proper Names, Vol. II, pp. 286-1284 १२. अन्तकृद्दशांग, वर्ग ७, अ. १ सू. १३. वर्ग ८ अ. १-१० १३. ज्ञाताधर्मकथासूत्र अ. १ सू. ८ (पत्र १४-१) १४. दशाश्रुतस्कन्ध, सभाष्यए भा. १, पृष्ठ १७ १६. महावग्ग ८-१-१५ १७. (क) जातक, २-४०३ (ख) Dictionary of Pali Proper Names, Vol. II, p. 286 (ग) संयुक्त निकाय, अट्ठकथा [१६]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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