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________________ जिस आगम में नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन हो वह निरयावलिया है। इस आगम में एक श्रुतस्कन्ध है, बावन अध्ययन हैं, पाँच वर्ग हैं, ग्यारह सौ श्लोक प्रमाण मूल पाठ है। निरयावलिया के प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं। इनमें काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पीउसेनकण्ह, महासेनकण्ह का वर्णन है । सम्राट श्रेणिक : एक अध्ययन प्राचीन मगध के इतिहास को जानने के लिये एह उपांग बहुत ही उपयोगी है। इसमें सम्राट् श्रेणिक के राज्यकाल का निरूपण हुआ है। सम्राट श्रेणिक का जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में क्रमश: 'श्रेणिक भिभिसार' और 'श्रेणिक बिंबिसार' इस प्रकार संयुक्त नाम मुख्य रूप से मिलते हैं। जैन दृष्टि से श्रेणियों की स्थापना करने से उनका श्रेणिक नाम पड़ा। बौद्ध दृष्टि से पिता के द्वारा अट्ठारह श्रेणियों का स्वामी बनाये जाने के कारण वह श्रेणिक बिंबिसार के रूप में विश्रुत हुआ ।" जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में श्रेणियों की संख्या अट्ठारह ही मानी गई है। श्रेणियों के नाम भी परस्पर मिलते-जुलते हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में नवनारू", नव-कारू' श्रेणियों के अट्ठारह भेदों का विस्तार से निरूपण है । किन्तु बौद्ध साहित्य में श्रेणियों के नाम इस प्रकार व्यवस्थित प्राप्त नहीं हैं। 'महावस्तु' में श्रेणियों के तीस नाम मिलते हैं, उनमें से बहुत से नाम 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' में उल्लिखित नामों से मिलते-जुलते हैं । डा. आर. सी. मजूमदार ने विविध ग्रन्थों के आधार से सत्ताईस श्रेणियों के नाम दिये हैं, पर वे निश्चय नहीं कर पाये कि अट्ठारह श्रेणियों के नाम कौनसे हैं । " संभव है उन्होंने जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का अवलोकन न किया हो । यदि वे अवलोकन कर लेते तो इस प्रकार उनके अन्तर्मानस में शंका उद्बुद्ध नहीं होती । कितने ही विज्ञों का यह भी अभिमत है कि राजा श्रेणिक के पास श्रेणी: कायति श्रेणिको मगधेश्वरः । ४. ५. - अभिधानचिन्तामणिः, स्वोपज्ञवृत्तिः, मर्त्य काण्ड, श्लोक ३७६ सपित्राष्टादशसु श्रणिस्ववतारितः, अतोऽस्य श्रेण्यां बिम्बिसार इति ख्यातः ॥ विनयपिटक, गिलगिट मैन्यूस्क्रिप्ट | ६. जम्बूद्वीपपत्ति, वक्ष ३, जातक, मूगपक्ख जातक, भा. ६ । ७-८ कुंभार, पट्टइल्ला, सुवण्णकारा, सूवकारा य । गंधव्वा, कासवग्गा, मालाकारा, कच्छकरा ॥ १ ॥ तंबोलिया य एए नवप्पयारा या नारुआ भणिआ । अह णं णवप्पयारे कारुअवण्णे पवक्खामि ॥२ ॥ चम्मरु, जंतुपीलग, गंछिअ, छिंपाय, कंसारे य । सीवग, गुआर, भिल्लग, धीवर वण्णइ अट्ठदस ॥ ३ ॥ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ९. महावस्तु भाग ३, पृष्ठ ११३ तथा ४४२-४४३ १०. Corporate Life in Ancient India, Vol. II, p. 18 [१५]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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