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________________ १२२ ] [महाबल सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी १०. तदनन्तर प्रातःकाल होने पर बल राजा अपनी शय्या से उठा और पादपीठ से नीचे उतरा। उतरकर जहाँ व्यायामशाला थी, वहाँ गया। जाकर व्यायामशाला में प्रवेश किया और जैसा औपपातिक सूत्र में व्यायामशाला और स्नानगृह संबंधी कूणिक राजाकृत कार्यों का वर्णन है, तदनुरूप करके यावत् चन्द्र के समान प्रियदर्शन नरपति स्नानगृह से बाहर निकला। निकलकर जहाँ सभाभवन था, वहाँ आया और आकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके सिंहासन पर बैठ गया। बैठने के पश्चात् अपने उत्तर-पूर्व दिग्भाग – ईशान कोण में श्वेत वस्त्र से आच्छादित तथा सरसों आदि मांगलिक पदार्थों से उपचरित - संस्कारित आठ भद्रासन रखवाए और फिर अपने समीप ही अनेक प्रकार के मणिरत्नों से मंडित अतीव दर्शनीय, महामूल्यवान् उत्तम वस्त्र से निर्मित चिकनी, ईहामृग, वृषभ आदि विविध प्रकार के चित्रामों से चित्र विचित्र एक यवनिका डलवाई और उसके अन्दर प्रभावती देवी के लिये भांति-भांति के मणिरत्नों से रचित, विचित्र श्वेत वस्त्र से आच्छादित, सुखद स्पर्श वाला सुकोमल, गद्दीयुक्त भद्रासन रखवाया और कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा - ११. “खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अट्ठङ्गमहानिमित्तसुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह।' तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता बलस्स रन्नो अन्तियाओ पडिनिक्खमइ, सिग्धं तुरियं चवलं चण्डं वेइयं हत्थिणापुर नगरं मझमझेणं जेणेव तेसिं सुविणलक्खणपाढगाणं गिहाइं, तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए सद्दावेन्ति। तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलस्स रन्नो कोडुम्बियपुरिसेहिं सदाविया समाणा हट्ठतु४० ण्हाया कय० जाव सरीरा सिद्धत्थगहरियालियकयमङ्गलमुद्धाणा सएहितो गिहेहितो निग्गच्छन्ति, हत्थिणापुर नगरं मझमझेणं जेणेव बलस्स रन्नो भवणवरवडिंसए तेणेव उवागच्छन्ति, करयल बलरायं जएणं विजएणं वद्धावेन्ति। तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा बलेणं रन्ना वन्दियपूइअसक्कारियसंमाणिया पत्तेयं पत्तेयं पुव्वन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयन्ति। ११. देवानुप्रियो! शीघ्र ही सूत्र और अर्थ सहित अष्टांग महानिमित्तों के ज्ञाता, विविधशास्त्रों में प्रवीण स्वप्नलक्षणपाठकों को बुलाओ। तब वे कौटुम्बिक पुरुष आज्ञा स्वीकार करके बल राजा के पास से निकले और शीघ्र, त्वरित, चपल और प्रचंड गति से हस्तिनापुर नगर के मध्य में से होते हुए जहाँ स्वप्नलक्षणपाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचे और स्वप्नलक्षणपाठकों को बुलाया। __तत्पश्चात् उन बल राजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा आमंत्रित किये जाने पर स्वप्नलक्षणपाठक
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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