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वर्ग ३ : चतुर्थ अध्ययन ]
[ ८९ हैं। इनको अणुव्रत इसलिये कहते हैं कि हिंसा आदि पाप कार्यों और सावद्य योगों का आंशिक त्याग किया जाता है।
___ सात शिक्षाव्रतों के दो प्रकार हैं – गुणव्रत और शिक्षाव्रत। गुणव्रत तीन और शिक्षाव्रत चार हैं। इन दोनों के अभ्यास एवं साधना से अणुव्रतों के गुणात्मक विकास में सहायता मिलती है। अणुव्रत आदि रूप बारह प्रकार के श्रावक धर्म की सांगोपांग जानकारी के लिये उपासकदशांगसूत्र का अध्ययन करना चाहिये। सोमा की प्रव्रज्या
५२. तए णं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ अन्नया कयाइ पुव्वाणुपुव्विं ....... जाव विहरंति। तए णं सा सोमा माहणी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठा बहाया तहेव निग्गया, जाव वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता धम्म सोच्चा (जाव) नवरं 'रटकूडं आपुच्छामि, तए णं पव्वयामि।'
'अहासुहं...।'
तए णं सा सोमा माहणी, सुव्वयं अजं वंदइ नमसइ, वंदित्तानमंसित्ता सुव्वयाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव रट्ठकूडे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल० तहेव आपुच्छइ (जाव) पव्वइत्तए।
'अहासुहं, देवाणुप्पिए! मा पडिबन्धं .....।'
तए णं रट्ठकूडे विउलं असणं, तहेव जाव पुव्वभवे सुभद्दा, (जाव) अजा जाया इरियासमिया (जाव) गुत्तबम्भयारिणी।
५२. इसके बाद वे सुव्रता आर्या किसी समय पूर्वानुपूर्वी के क्रम से गमन करती हुई, ग्रामानुग्राम में विचरण करती हुई यावत् पुनः विभेल संनिवेश में आएंगी। तब वह सोमा ब्राह्मणी इस संवाद को सुनकर हर्षित एवं संतुष्ट हो, स्नान कर तथा सभी प्रकार के अलंकारों से विभूषित हो पूर्व की तरह दासियों सहित दर्शनार्थ निकलेगी यावत् वंदन-नमस्कार करेगी। वंदन-नमस्कार करके धर्मश्रवण कर यावत् सुव्रता आर्या से कहेगी - मैं राष्ट्रकूट से पूछकर आपके पास मुंडित होकर प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहती हूँ।
तब सुव्रता आर्या उससे कहेंगी - देवानुप्रिये! तुम्हें जिसमें सुख हो वैसा करो, किन्तु शुभ कार्य में विलम्ब मत करो।
इसके बाद सोमा माहणी उन सुव्रता आर्याओं को वंदन-नमस्कार करके उनके पास से निकलेगी और जहां अपना घर और उसमें जहाँ राष्ट्रकूट होगा, वहां आएगी। आकर दोनों हाथ जोड़कर पूर्व के समान पूछेगी कि आपकी आज्ञा लेकर आनगारिक प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ।
इस बात को सुनकर राष्ट्रकूट कहेगा - देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो किन्तु इस कार्य में प्रमाद-विलम्ब मत करो।
___ इसके पश्चात् राष्ट्रकूट विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम चार प्रकार के भोजन बनवाकर