________________
९० ]
[ पुष्पिका
अपने मित्र, जाति-बांधव, स्वजन, संबंधियों को आमंत्रित करेगा। उनका सत्कार सन्मान करेगा इत्यादि, जिस प्रकार पूर्वभव में सुभद्रा प्रवजित हुई थी, उसी प्रकार यहां भी वह प्रव्रजित होगी और आर्या होकर ईर्यासमिति आदि समितियों एवं गुप्तियों से युक्त होकर यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी होगी।
५३. तए णं सा सोमा अजा सुव्वयाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अङ्गाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूइं छट्ठमट्ठमदसमदुवालस जाव भावेमाणी बहूहिं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिक्कन्ता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा सक्कस्स देविन्दस्स देवरन्नो सामाणियदेवत्ताए उववजिहिइ।
तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दो सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं सोमस्स वि देवस्स दो सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
५३. तदनन्तर वह सोमा आर्या सुव्रता आर्या से सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन करेगी। अध्ययन करके विविध प्रकार के बहुत से चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादशभक्त आदि विचित्र तपःकर्म से आत्मा को भावित करती हुई बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करेगी। इसके बाद मासिक संलेखना से आत्मा शुद्ध कर, अनशन द्वारा साठ भोजनों को छोड़कर, आलोचना प्रतिक्रमणपूर्वक समाधिस्थ हो, मरणसमय के आने पर मरण करके देवेन्द देवराज शक्र के सामानिक देव के रूप में उत्पन्न होगी।
वहाँ किसी-किसी देव की दो सागरोपम की स्थिति होती है। उस सोम देव की भी दो सागरोपम की स्थिति होगी।
५४. 'से णं, भन्ते, सोमे देवे तओ देवलोगाओ आउक्खएणं, जाव चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववजिहिइ ?'
गोयमा, महाविदेहे वासे (जाव) अन्तं काहिसि।
५४. इस कथानक को सुनने के पश्चात् गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा – 'भदन्त! वह सोम देव आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर देवलोक से च्यवकर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ?'
भगवान् ने कहा – 'हे गौतम! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध होगा यावत् सर्व दुःखों का अंत करेगा।'
५५. निक्खेवो - तं एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं भगवया पुफियाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि।
श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा – 'आयुष्मन् जम्बू! इस प्रकार से श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने पुष्पिका के चतुर्थ अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है। ऐसा मैं कहता हूँ।'
॥ चतुर्थ अध्ययन समाप्त॥
00