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________________ वर्ग ३ : चतुर्थ अध्ययन ] [ ८७ तणं से रट्ठकूडे सोमं माहणिं एवं वयासी ' मा णं तुमं देवाणुप्पिए! इयाणिं मुण्डा भवित्ता (जाव ) पव्वयाहि । भुञ्जाहि ताव देवाणुप्पिए! मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई, तओ पच्छा भुत्तभोई सुव्वयाणं अज्जाणं अन्तिए मुण्डा (जाव) पव्वयाहि ।' तणं सा सोमा माहणी पहाया (जाव ) सरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता विभेलं संनिवेसं मज्झमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं अज्जाणं उवस्सए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ, नमंसइ, पज्जुवासइ । तणं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ सोमाए माहणीए विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्मं परिकहेन्ति जहा जीवा बज्झन्ति । तए णं सा सोमा माहणी सुव्वयाणं अज्जाणं अन्तिए (जाव ) दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जइ। सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया । तए णं सा सोमा माहणी समणोवासिया जाया अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा आसवसं वरनिज्जर कि रियाहि गरणबंधमो क्खकु सला असहिज्जा देवासुरनागसुवण्णरक्खसकिंनरकिंपुरिसगरुलगन्धव्वमहोरगाईहिं देवगणेहि निग्गन्थाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा निम्गंथे पावयणे निस्संकिआ निक्कंखिआ निव्वितिगिच्छा लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अहिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिञ्जपेम्माणुरागरत्ता अयमाउसो निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे, ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तन्तेउरघरप्पवेसा चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पीढफलगसेज्जासंथारेणं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुञ्छणेणं ओसहभेसज्जेणं पडिलाभेमाणा पडिलाभेमाणा बहुहिं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहि य अप्पाणं भावेमाणी विहरइ । तणं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ अन्नया कयाइ विभेलाओ संनिवेसाओ पडिनिक्खमन्ति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति । ५१. तत्पश्चात् वह सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूट के निकट जाकर दोनों हाथ जोड़ आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहेगी देवानुप्रिय ! मैंने आर्याओं से धर्मश्रवण किया है और वह धर्म मुझे इच्छित - प्रिय है यावत् रुचिकर लगा है। इसलिये देवानुप्रिये ! आपकी अनुमति लेकर मैं सुव्रता आर्या से प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ । तब राष्ट्रकूट सोमा ब्राह्मणी से कहेगा देवानुप्रिये ! अभी तुम मुंडित होकर यावत् घर छोड़कर प्रव्रजित मत होओ किन्तु देवानुप्रिये ! अभी तुम मेरे साथ विपुल कामभोगों का उपभोग करो और भुक्तभोगी होने के पश्चात् सुव्रता आर्या के पास मुंडित होकर यावत् गृहत्याग कर प्रव्रजित होना । - > राष्ट्रकूट इस सुझाव को मानने के पश्चात् सोमा ब्राह्मणी स्नान कर मंगल प्रायश्चित्त कर यावत् आभरण- अलंकारों से अलंकृत होकर दासियों के समूह से घिरी हुई अपने घर से निकलेगी । निकलकर विभेल सन्निवेश के मध्यभाग को पार करती हुई सुव्रता आर्याओं के
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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