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________________ ८६ ] [ पुष्पिका राष्ट्रकूट के साथ विपुल भोगों को भोगते हुये यावत् मैंने प्रतिवर्ष बालक-युगलों (दो बालकों) को जन्म देकर सोलह वर्ष में बत्तीस बालकों का प्रसव किया है। जिससे मैं उन दुर्जन्मा बहुत से बालकबालिकाओं यावत् बच्चे-बच्चियों में से किसी के उत्तान शयन यावत् मूत्र त्यागने से उन बच्चों के मलमूत्र-वमन आदि से सनी होने के कारण अत्यन्त दुर्गन्धित शरीर वाली हो राष्ट्रकूट के साथ भोगोपभोग नहीं भोग पाती हूँ। आर्याओं! मैं आप से धर्म सुनना चाहती हूँ।' । सोमा के इस निवेदन को सुनकर वे आर्याएँ सोमा ब्राह्मणी को विविध प्रकार के यावत् केवलिप्ररूपित धर्म का उपदेश सुनायेंगी। सोमा का श्रावकधर्म-ग्रहण ५०. तए णं सा सोमा माहणी तासिं अजाणं अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ० जाव हियया ताओ अज्जाओ वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी – “सद्दाहामि णं; अज्जाओ, निग्गन्थं पावयधं, जाव अब्भुढेमि णं अजाओ! निग्गन्थं पावयणं, एवमेयं अजाओ! जाव से जहेयं तुब्भे वयह। जं नवरं, अज्जाओ, रट्ठकूडं आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अन्तिए (जाव) मुण्डा पव्वयामि।' । 'अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबन्ध ..।' तए णं सा सोमा माहणी ताओ अजाओ वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसजेइ। ५०. तत्पश्चात् सोमा ब्राह्मणी उन आर्यिकाओं से धर्मश्रवण कर और उसे हृदय में धारण कर हर्षित और संतुष्ट हो कर-यावत् विकसित हृदयपूर्वक उन आर्याओं को वन्दन-नमस्कार करेगी। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहेगी - हे आर्याओ! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ यावत् उसे अंगीकार करने के लिये उद्यत हूँ। आर्याओ! निर्ग्रन्थ प्रवचन इसी प्रकार का है यावत् जैसा आपने प्रतिपादित किया है। किन्तु मैं राष्ट्रकूट से पूछूगी। तत्पश्चात् आप देवानुप्रिय के पास मुण्डित होकर प्रव्रजित होऊँगी। इस पर आर्याओं ने सोमा ब्राह्मणी से कहा – देवानुप्रियो! जैसे सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो। - इसके बाद सोमा ब्राह्मणी उन आर्याओं को वन्दन-नमस्कार करेगी और वन्दन-नमस्कार करके विदा करेगी। सोमा का राष्ट्रकूट से दीक्षा के लिये पूछना ५१. तए णं सा सोमा माहणी जेणेव रट्ठकूडे तेणेव उवागया करयल० ..."एवं वयासी - ‘एवं खलु मए देवाणुप्पिया, अजाणं अन्तिए धम्मे निसन्ते। से वि य णं धम्मे इच्छिए (जाव) अभिरुइए। तए णं अहं, देवाणुप्पिया, तुम्भेहिं अब्भणुनाया सुब्बयाणं अजाणं जाव पव्वइत्तए।'
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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