SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय वक्षस्कार ] तीसेणं समाए रहे वासे तत्थ तत्थ बहवे भेरुतालवणाई हेरुतालवणाई मेरुतालवणाई पभयालवणाइं सालवणाई सरलवणाई सत्तिवण्णवणाई पूअफलिवणाई खज्जूरीवणाई णालिएरीवणाई कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूलाई जाव चिट्ठति । [३३ तीसेणं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ बहवे सेरिआगुम्मा णोमालिआगुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोज्जगुम्मा वीअगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुज्जयगुम्मा सिंदुवारगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहिआगुम्मा मल्लिआगुम्मा वासंतिआगुम्मा वत्थुलगुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगत्थिगुम्मा मगदंतिआगुम्मा चंपकगुम्मा जाइगुम्मा णवणीइआगुम्मा कुन्दगुम्मा महाजाइगुम्मा रम्मा महामेहणिकुरंबभूआ दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेति; जे णं भरहे वासे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागं वायविधुअग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिअं करेंति । तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ तहिं तहिं बहुईओ पउमलयाओ ( णागलयाओ असोअलयाओ चंपगलयाओ चूयलयाओ वणलयाओ वासंतियलयाओ अइमुत्तयलयाओ कुन्दलयाओ) सामलयाओ णिच्चं कुसुमिआओ, ( णिच्चं माझ्याओ, णिच्चं लवइयाओ, णिच्चं थवइयाओ, णिच्चं गुलइयाओ, णिच्चं गोच्छियाओ, णिच्चं जमलियाओ, णिच्चं जुवलियाओ, णिच्चं विणमियाओ, णिच्वं पणमियाओ, णिच्वं कुसुमियमाइयलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुवलियविणमियपणमिय- सुविभत्तपिंडमंजरिवर्डिसयधराओ) लावण्णओ । तीसे णं समाए रहे वासे तत्थ तहिं तहिं बहुईओ वणराईओ पण्णत्ताओ- किण्हाओ, किण्होभासाओ जाव २ मणोहराओ, रयमत्तगछप्पयकोरंग भिंगारग- कोंडलग- जीवंजीवगनंदीमुहकविल- पिंगलक्खग - कारंडव-चक्कवायग- कलहंस-हंस - सारस- अणेगसउणगण-मिहुविअरिआओ, सघुणइयमहुरसरणाइआओ, संपिंडिअदरियभमरमहुयरिपहकरपरिलिंतमत्तछप्पयकुसुमासवलोलमहुरगुमगुमंतगुंजंतदेसभागाओ, अब्भितरपुप्फ-फलाओ, बाहिरपत्तोच्छण्णाओ, पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छन्नवलिच्छत्ताओ, साउफलाओ, निरोययाओ, अकंटयाओ, णाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगसोहियाओ, विचित्तसुहकेउभूयाओ, वावी - पुक्खरिणी - दीहियासुनिवेसियरम्मजालहरयाओ, पिंडिम-णीहारिमसुगंधिसुहसुरभिमणहरं च महयागंधद्धाणिं मुयंताओ, सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धाओ, सुरम्माओ पासाईयाओ, दरिसणिज्जाओ, अभिरूवाओ, पडिरूवाओ। [२६] जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के सुषमासुषमा नामक प्रथम आरे में, जब वह अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा में था, भरतक्षेत्र का आकार - स्वरूप अवस्थिति-सब किस प्रकार का था ? गौतम ! उसका भूमिभाग बड़ा समतल तथा रमणीय था । मुरज के ऊपरी भाग की ज्यों वह समतल था । नाना प्रकार की काली, (नीली, लाल, हल्दी के रंग की - पीली तथा ) सफेद मणियों एवं तृणों से वह उपशोभित था। तृणों एवं मणियों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श तथा शब्द अन्यत्र वर्णित के अनुसार कथनीय १. देखें सूत्र यही २. देखें सूत्र संख्या ६
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy