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द्वितीय वक्षस्कार ]
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वाससहस्साइं कालो दुस्समदुस्समा १, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दुस्समा २, एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिओ कालो दुस्समसुसमा ३, दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा ४, तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा ५ ) चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा ६, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी - उस्सप्पिणी ।
[२५] भगवन् ! औपमिक काल का क्या स्वरूप है, वह कितने प्रकार का है ? गौतम ! औपमिक काल दो प्रकार का है- पल्योपम तथा सागरोपम ।
भगवन् ! पल्योपम का क्या स्वरूप है ?
गौतम ! पल्योपम की प्ररूपणा करूँगा - (इस संदर्भ में ज्ञातव्य है - ) परमाणु दो प्रकार का है - (१) सूक्ष्म परमाणु तथा (२) व्यावहारिक परमाणु । अनन्त सूक्ष्म परमाणु- पुद्गलों के एक भावापन्न समुदाय से व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है । उसे ( व्यावहारिक परमाणु को ) शस्त्र काट नहीं सकता ।
कोई भी व्यक्ति उसे तेज शस्त्र द्वारा भी छिन्न- भिन्न नहीं कर सकता। ऐसा सर्वज्ञों ने कहा है । वह ( व्यावहारिक परमाणु) सभी प्रमाणों का आदि कारण है।
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अनन्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदाय-संयोग से एक उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है । आठ उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओं की एक श्लक्ष्मश्लक्ष्णिका होती है। आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिकाओं का एक उर्ध्वरेणु होता है। आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु होता है। आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु (रथ के चलते समय उड़ने वाले रज- कण) होता है। आठ रथरेणुओं का देवकुरु तथा उत्तरकुरु निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों का हरिवर्ष तथा रम्यकवर्ष के निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों का हैमवत तथा हैरण्यवत निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों का पूर्वविदेह एवं अपरविदेह के निवासी मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। इन आठ बालाग्रों की एक लीख होती है । आठ लीखों की एक जूं होती है। आठ जुओं का एक यवमध्य होता है। आठ यवमध्यों का एक अंगुल होता है । छ: अंगुलों का एक पाद पादमध्य-तल होता है। बारह अंगुलों की एक वितस्ति होती है। चौबीस अंगों की एक रत्न - हाथ होता है। अड़तालीस अंगुलों की एक कुक्षि होती है । छियानवै अंगुलों का एक अक्ष-आखा शकट का भागविशेष होता है। इसी तरह छियानवै अंगुलों का एक दंड, धनुष, जुआ, मूसल तथा नलिका - एक प्रकार की यष्टि होती है। दो हजार धनुषों का एक गव्यूत-कोस होता है। चार गव्यूतों का एक योजन होता है ।
इस योजन-परिमाण से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊँचा तथा इससे तीन परिधि युक्त पल्य-धान्य रखने के कोठे जैसा हो । देवकुरु तथा उत्तरकुरु में एक दिन, दो दिन, तीन दिन, अधिकाधिक सात दिन-रात के जन्मे यौगलिक के प्ररूढ बालाग्रों से उस पल्य को इतने सघन, ठोस,