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________________ ३०] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र काल का विवेचन : विस्तार २५. से किं तं उवमिए ? उवमिए दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-पलिओवमे असागरोवमे । से किं तं पलिओवमे ? पलिओवमस्स परूवणं करिस्सामि-परमाणु दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-सुहमे अवावहारिए अ, अणंताणं सुहमपरमाणुपुग्गलाणं समुदयसमिइसमागमेणं वावहारिए परमाणू णिप्फज्जइ, तत्थ णो सत्थं कमइ सत्येण सुतिक्खेणवि, छेत्तुं भित्तुं च जं किर ण सक्का। तं परमाणुं सिद्धा, वयंति आई पमाणाणं ॥१॥ वावहारिअपरमाणूणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा उस्सण्हसहिआइ वा, सण्हिसण्हिआइ वा, उद्धरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूआ इ वा, जवमज्झेइ वा, उस्सेहंगुले इ वा, अट्ठ उस्सण्हसण्हिआओ सा एगा सहसण्हिया, अट्ठ सहसण्हिआओ सा एगा उद्धरेणू, अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरुत्तरकुराण मणुस्साणं वालग्गे, एवं हेमवयहेरण्णवयाण मणुस्साणं, अट्ठ पुव्वविदेहअवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूआ,अट्ठजूआओ से एगेजवमझे, अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले।एएणंअंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ, बारस अंगुलाई विहत्थी, चउवीसं अंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, छण्णउइ अंगुलाई से एगे अक्खेइ वा, दंडेइ वा, धणूड वा, जुगेइ वा, मुसलेइ वा, णालिआइ वा। एएणं धणुप्पमाणेणं दो धणुसहस्साई गाउअं, चत्तारि गाउआई जोअणं। एएणं जोअणप्पमाणेणं जें पल्ले, जोअणं आयामविक्खंभेणं, जोयणं उ8 उच्चत्तेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं से णं पल्ले एगाहिअबेहियतेहिअउक्कोसेणं सत्तरत्तपरूढाणं संभटे, सण्णिचिए, भरिए वालग्गकोडीणं। तेणं वालग्गा णो कुत्थेजा, णो परिविद्धंसेज्जा,णो अग्गी डहेज्जा, णो वाए हरेज्जा, णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा। तओ णं वाससए वाससए एगमेगं वालग्गंअवहाय जावइएणंकालेणं से पल्लेखीणे,णीरए, णिल्लेवेणिट्ठिए भवइसेतं परिओवमे। एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिआ। तं सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परीमाणं॥१॥ एएणं सागरोवमप्पमाणेणं चत्तारिसागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा १,तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा २, दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा ३, एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिओ कालो दुस्समसुसमा ४, एक्कवीसं वाससहस्सई कालो दुस्समा ५, एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दुस्समदुस्समा ६, पुणरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहस्साइंकालो दुस्समदुस्समा १ एवं पडिलोमंणेयव्वं ( एक्कवीसं
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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