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________________ प्रथम वक्षस्कार] सणामयाजण्णामया य कूडा तन्नामा खलु हवंति ते देवा। परिओवमट्टिईया हवंति पत्तेयं पत्तेयं। रायहाणीओ जंबुद्दीवे दीवेमंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणंतिरिअंअसंखेजदीवसमुद्दे वीईवइत्ताअण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोअणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं रायहाणीओ भाणिअव्वाओ विजयरायहाणीसरिसयाओ। [२०] भगवन् ! वैताढ्य पर्वत का दक्षिणार्ध भरतकूट नामक कूट कहाँ है ? गौतम! खण्डप्रपातकूट के पूर्व में तथा सिद्धायतनकूट के पश्चिम में वैताढ्य पर्वत का दक्षिणार्ध भरतकूट है। उसका परिमाण आदि वर्णन सिद्धायतन कूट के बराबर है। ( -वह छह योजन एक कोस ऊँचा, मूल में छह योजन एक कोस चौड़ा, मध्य में कुछ कम पांच योजन चौड़ा तथा ऊपर कुछ अधिक तीन योजन चौड़ा है। मूल में उसकी परिधि कुछ कम बाईस योजन की, मध्य में कुछ कम पन्द्रह योजन की तथा ऊपर कुछ अधिक नौ योजन की है। वह मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त-संकुचित या संकड़ा तथा ऊपर पतला है। वह गोपुच्छसंस्थानसंस्थित है-गाय के पूंछ के आकार जैसा है। वह सर्व रत्नमय, स्वच्छ, सुकोमल तथा सुन्दर है। वह एक पद्मवरवेदिका एवं एक वनखंड से सब ओर से परिवेष्टित है। दोनों का परिमाण पूर्ववत् है। दक्षिणार्ध भरतकूट के ऊपर अति समतल तथा रमणीय भूमिभाग है। वह मुरज या ढोलक के ऊपरी भाग जैसा समतल है। वहाँ वाणव्यन्तर देव और देवियां विहार करते हैं।) दक्षिणार्ध भरतकूट के अति समतल, सुन्दर भूमिभाग में एक उत्तम प्रासाद है। वह एक कोस ऊँचा और आधा कोस चौड़ा है। अपने से निकलती प्रभामय किरणों से वह हँसता-सा प्रतीत होता है, बड़ा सुन्दर है। उस प्रासाद के ठीक बीच में एक विशाल मणिपीठिका है। वह पाँच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी तथा अढाई सौ धनुष मोटी है, सर्वरत्नमय है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक सिंहासन है। उसका विस्तृत वर्णन अन्यत्र द्रष्टव्य है। भगवन् ! उसका नाम दक्षिणार्ध भरतकूट किस कारण पड़ा ? गौतम! दक्षिणार्ध भरतकूट पर अत्यन्त ऋद्धिशाली, (द्युतिमान्, बलवान्, यशस्वी, सुखसम्पन्न एवं सौभाग्यशाली) एक पल्योपमस्थितिक देव रहता है। उसके चार हजार सामानिक देव, अपने परिवार से परिवृत चार अग्रमहिषियाँ, तीन परिषद्, सात सेनाएं, सात सेनापति तथा सोलह हजार आत्मरक्षक देव हैं । दक्षिणार्ध भरतकूट की दक्षिणार्धा नामक राजधानी है, जहाँ वह अपने इस देव परिवार का तथा बहुत से अन्य देवों और देवियों का आधिपत्य करता हुआ सुखपूर्वक निवास करता है, विहार करता है-सुख भोगता है। भगवन्! दक्षिणार्ध भरतकूट नामक देव की दक्षिणार्धा नामक राजधानी कहाँ है ? गौतम! मन्दर पर्वत के दक्षिण में तिरछे असंख्यात द्वीप और समुद्र लाँघकर जाने पर अन्य जम्बूद्वीप है। वहाँ दक्षिण दिशा में बारह हजार योजन नीचे जाने पर दक्षिणार्ध भरतकूट देव की दक्षिणार्धभरता नामक राजधानी है। उसका वर्णन विजयदेव की राजधानी के सदृश जानना चाहिए। (दक्षिणार्धभरतकूट, खंडप्रपातकूट,
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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