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________________ प्रथम वक्षस्कार] [१९ हत्थतलपायतला, अंकामयाइंणक्खाइंअंतोलोहियक्खपडिसेगाई, कणगामया पाया, कणगामया गुप्फा, कणगामईओ जंघाओ, कणगामया जाणू, कणगामया ऊरू, कणगामईओ गायलट्ठीओ रिट्ठामए मंसू, तवणिज्जमईओणाभीहो, रिट्ठामइओ रोमराईओ,तवणिज्जमया चुच्चुआ,तवणिजमया सिरिवच्छा, कणगमईओ बाहाओ, कणगामईओ गीवाओ, सिलप्पवालमया उट्ठा, फलिहामया दंता, तवणिज्जमईओ जीहाओ, तवणिज्जमईआ तालुआ, कणगमईओ णासिगाओ अंतोलोहिअक्खपडिसेगाओ,अंकामयाइंअच्छीणिअंतोलोहिअक्खपडिसेगाइं, पुलगामईओ दिछीओ, रिहामईओ तारगाओ, रिट्ठामयाइं अच्छिपत्ताइं, रिट्ठामईओ भमुहाओ,कणगामया कवोला, कणगामया सवणा, कणगामईओ णिडालपट्टियाओ, वइरामईओ सीसघडीओ, तवणिज्जमईओ केसंतकेसभूमिओ, रिट्ठामया उवरिमुद्धया। तासि णं जिणपडिमाण पिट्टओ पत्तेयं-पत्तेयं छत्तधारपडिमा पण्णत्ता।ताओणं छत्तधारपडिमाओ हिमरययकुंदिंदुप्पगासाइंसकोरंटमल्लदामाई,धवलाइं आयवत्ताइंसलीलं ओहारेमाणीओ चिट्ठति। ___ तासिणं जिणपडिमाणं उभओ पासिं पत्तेय-पत्तेयं दो-दो चामरधारपडिमाओ पण्णत्ताओ। ताओणंचामरधारपडिमाओ चंदप्पहवइरवेरुलियणाणामणिकणगरयणखइअमहरिहतवणिज्जुजलविचित्तदंडाओ,चिल्लियाओ,संखंककुंददगरयमयमहिअफेणपुंजसन्निकासाओ, सुहुमरययदीहवालाओ, धवलाओ.चामराओ सलीलं धारेमाणीओ चिट्ठति। तासि णं जिणपडिमाणं पुरओ दो दो णागपडिमाओ, दो दो जक्खपडिमाओ, दो दो भूअपडिमाओ, दो दो कुंडधारपडिमाओ विणओणयाओ, पायवडियाओ, पंजलिउडाओ, सन्निक्खित्ताओ चिटुंति-सव्वरयणामईओ,अच्छाओ, सहाओ, लण्हाओ, घट्ठाओ, मट्ठाओ, नीरयाओ, निप्पंकाओ जाव पडिरूवाओ। ___ तत्थ णं जिणपडिमाणं पुरओ अट्ठसयं घंटाणं, अट्ठसयं चंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं, आयंसगाणं, थालाणं, पाईणं, सुपइट्ठगाणं, मणोगुलिआणं, वातकरगाणं,चित्ताणं रयणकरंडगाणं, हयकंठाणंजाव उसभकंठाणं, पुप्फचंगेरीणंजावलोमहत्थचंगेरीणं, पुष्फपडलगाणंजावलोमहत्थपडलगाणं)धूवकडुच्छुगा। . [१९] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? गौतम ! पूर्व लवणसमुद्र के पश्चिम में, दक्षिणार्ध भरतकूट के पूर्व में, जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर सिद्धायतनकूट नामक कूट है। वह छह योजन एक कोस ऊँचा, मूल में छह योजन एक कोस चौड़ा, मध्य में कुछ कम पाँच योजन चौड़ा तथा ऊपर कुछ अधिक तीन योजन चौड़ा है। मूल में उसकी परिधि कुछ कम बाईस योजन की, मध्य में कुछ कम पन्द्रह योजन की तथा ऊपर कुछ अधिक नौ योजन की है। वह मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त-संकुचित या संकड़ा तथा ऊपर पतला है। वह गोपुच्छसंस्थान-संस्थित है-गाय के पूंछ के आकार जैसा है। वह सर्व-रत्नमय, स्वच्छ, सुकोमल तथा सुन्दर है।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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